
फिल्म प्रोड्यूसर पल्लवी जोशी ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को एक खुला पत्र लिखकर अपनी फिल्म की रिलीज़ के लिए हस्तक्षेप की मांग की है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि वे कोई एहसान नहीं बल्कि सुरक्षा की मांग कर रही हैं और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा का आग्रह किया है। यह कदम फिल्म इंडस्ट्री में बढ़ते विवादों और सेंसरशिप के मुद्दों को लेकर उठाया गया है।
पल्लवी जोशी ने अपने खुले पत्र में राष्ट्रपति से प्रत्यक्ष अपील करते हुए कहा है कि उन्हें अपनी फिल्म की रिलीज़ के लिए केवल संवैधानिक सुरक्षा चाहिए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि यह कोई व्यक्तिगत एहसान की मांग नहीं है, बल्कि एक नागरिक के रूप में उनके मौलिक अधिकारों की रक्षा का मामला है। फिल्म निर्माता के रूप में उनका कहना है कि उन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है।
भारतीय सिनेमा जगत में विवादास्पद फिल्मों की रिलीज़ को लेकर अक्सर समस्याएं आती रहती हैं। कई बार धार्मिक, राजनीतिक या सामाजिक संवेदनाओं को लेकर फिल्मों का विरोध होता है। ऐसी स्थिति में फिल्म निर्माता और प्रोड्यूसर्स को कानूनी और व्यावहारिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। पल्लवी जोशी का यह कदम फिल्म इंडस्ट्री की इसी समस्या को दर्शाता है।
फिल्म रिलीज़ से जुड़े विवादों में अक्सर सेंसर बोर्ड की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) फिल्मों की जांच करके उन्हें प्रमाणपत्र देता है। हालांकि, कई बार सामाजिक दबाव या राजनीतिक कारणों से फिल्मों की रिलीज़ में देरी होती है या रोक लगाई जाती है। ऐसे मामलों में निर्माताओं को न्यायालय या उच्च अधिकारियों से सहायता मांगनी पड़ती है।
संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत भारतीय नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार प्राप्त है। इसमें कलात्मक अभिव्यक्ति भी शामिल है। फिल्म निर्माता इसी अधिकार का इस्तेमाल करते हुए अपनी रचनाओं को जनता तक पहुंचाना चाहते हैं। पल्लवी जोशी की राष्ट्रपति से अपील इसी संवैधानिक अधिकार पर आधारित है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के नाम लिखे गए इस खुले पत्र में पल्लवी जोशी ने स्पष्ट किया है कि वे व्यक्तिगत सुविधा नहीं बल्कि न्याय की मांग कर रही हैं। उनका कहना है कि प्रत्येक फिल्म निर्माता को अपनी कृति को दर्शकों तक पहुंचाने का अधिकार है, बशर्ते कि वह कानूनी ढांचे के अंतर्गत हो। यह अपील फिल्म इंडस्ट्री में व्याप्त अनिश्चितता और चुनौतियों को उजागर करती है।
फिल्म इंडस्ट्री के कई अन्य व्यक्तित्व भी समान समस्याओं का सामना करते रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में कई फिल्में विभिन्न कारणों से विवादों में फंसी हैं। कुछ फिल्मों को रिलीज़ से पहले ही बैन कर दिया गया है, जबकि कुछ को काफी संघर्ष के बाद रिलीज़ करने की अनुमति मिली है। इससे फिल्म निर्माताओं में असंतोष बढ़ा है।
भारत में फिल्म निर्माण एक बड़ा व्यवसाय है जिसमें हजारों लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े होते हैं। जब किसी फिल्म की रिलीज़ में देरी होती है या रुकावट आती है, तो इससे न केवल निर्माता बल्कि पूरी टीम प्रभावित होती है। तकनीकी कर्मचारी, कलाकार, वितरक और सिनेमा हॉल के मालिक सभी को नुकसान उठाना पड़ता है।
पल्लवी जोशी की यह अपील फिल्म इंडस्ट्री में पारदर्शिता की मांग भी दर्शाती है। उनका कहना है कि फिल्म रिलीज़ की प्रक्रिया में स्पष्टता होनी चाहिए ताकि निर्माताओं को पता हो कि उन्हें किन नियमों का पालन करना है। अनिश्चितता की स्थिति में निवेशकों का भरोसा कम होता है और इंडस्ट्री की वृद्धि बाधित होती है।
राष्ट्रपति कार्यालय की तरफ से अभी तक इस खुले पत्र पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालांकि, यह अपील फिल्म इंडस्ट्री और मीडिया में चर्चा का विषय बन गई है। कई लोग इसे कलात्मक स्वतंत्रता के लिए एक महत्वपूर्ण कदम मान रहे हैं।
भारतीय सिनेमा की समृद्ध परंपरा में विविधता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का विशेष महत्व है। देश के संविधान निर्माताओं ने भी कलात्मक अभिव्यक्ति को संरक्षण प्रदान किया था। पल्लवी जोशी की राष्ट्रपति से यह अपील इसी मूल भावना को साकार करने की दिशा में एक प्रयास है, जहां संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करते हुए फिल्म निर्माताओं को उनकी कृतियों को प्रस्तुत करने की सुरक्षा मिल सके।