अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के चार साल बाद, अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी एक सात-दिवसीय ऐतिहासिक यात्रा पर नई दिल्ली पहुंचे हैं। यह यात्रा भारत और तालिबान के बीच अब तक के सबसे उच्च-स्तरीय आधिकारिक संपर्क का प्रतीक है, जो क्षेत्रीय भू-राजनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत दे रही है। इस दौरे का मुख्य उद्देश्य मानवीय सहायता, सुरक्षा चिंताओं और व्यापारिक संबंधों पर चर्चा करना है।
मुख्य तथ्य / त्वरित जानकारी
- ऐतिहासिक संपर्क: यह अगस्त 2021 के बाद किसी तालिबानी कैबिनेट मंत्री की पहली भारत यात्रा है, जो दोनों पक्षों के बीच बढ़ते व्यावहारिक जुड़ाव को दर्शाता है।
- प्रमुख एजेंडा: वार्ता में आतंकवाद विरोधी गारंटी, विशेष रूप से TTP और ISIS-K के खिलाफ, भारत द्वारा मानवीय सहायता की निरंतरता और रुकी हुई व्यापारिक गतिविधियों को फिर से शुरू करने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
- भारत का रुख: भारत ने अब तक तालिबान शासन को आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं दी है, और इस यात्रा को मान्यता की दिशा में एक कदम के बजाय एक ” pragmatic engagement ” (व्यावहारिक जुड़ाव) के रूप में देखा जा रहा है।
- मानवीय सहायता: भारत 2021 से अफगानिस्तान को 50,000 मीट्रिक टन से अधिक गेहूं, दवाएं और टीके भेज चुका है, जिससे वह इस क्षेत्र के सबसे बड़े मानवीय दानदाताओं में से एक बन गया है।
- क्षेत्रीय समीकरण: यह यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब चीन और पाकिस्तान अफगानिस्तान में अपना प्रभाव बढ़ा रहे हैं, और भारत अपनी रणनीतिक उपस्थिति बनाए रखने के लिए उत्सुक है।
पृष्ठभूमि और संदर्भ
अगस्त 2021 में जब तालिबान ने काबुल पर नियंत्रण किया, तो भारत ने अपने दूतावास को खाली कर दिया और “देखो और इंतजार करो” की नीति अपनाई। हालांकि, भारत ने अफगानिस्तान के लोगों के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों को कभी नहीं तोड़ा। जून 2022 में, भारत ने काबुल में अपने दूतावास में एक “तकनीकी टीम” भेजकर एक महत्वपूर्ण कदम उठाया, जिसका उद्देश्य मानवीय सहायता के वितरण की निगरानी करना और अफगान लोगों के साथ जुड़ाव बनाए रखना था।
पिछले कुछ वर्षों में, दोनों पक्षों के बीच दोहा और अन्य स्थानों पर अनौपचारिक बैठकें हुई हैं, लेकिन मुत्ताकी की यह यात्रा इन संबंधों को एक औपचारिक और संरचित संवाद की ओर ले जाने का पहला गंभीर प्रयास है। भारत की मुख्य चिंता यह सुनिश्चित करना है कि अफगान धरती का इस्तेमाल भारत विरोधी आतंकवादी समूहों, जैसे लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद, द्वारा न किया जाए।
नवीनतम आँकड़े और व्यापारिक संबंध
भारत और अफगानिस्तान के बीच व्यापारिक और आर्थिक संबंध तालिबान के सत्ता में आने के बाद लगभग ठप हो गए थे। हालांकि, धीरे-धीरे चीजें बदल रही हैं।
- द्विपक्षीय व्यापार: 2020-21 में, तालिबान के अधिग्रहण से पहले, भारत-अफगानिस्तान का द्विपक्षीय व्यापार लगभग $1.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था। 2024-25 के नवीनतम अनुमानों के अनुसार, यह घटकर केवल $200 मिलियन रह गया है, जो मुख्य रूप से दुबई के माध्यम से हो रहा है। मुत्ताकी की यात्रा का एक प्रमुख उद्देश्य प्रत्यक्ष व्यापार मार्गों को फिर से खोलना है।
भारत-अफगानिस्तान व्यापार (अनुमानित)
| वित्तीय वर्ष | व्यापार की मात्रा (USD) | टिप्पणी |
| 2020-21 | ~$1.5 बिलियन | तालिबान अधिग्रहण से पहले |
| 2022-23 | ~$50 मिलियन | अधिग्रहण के बाद भारी गिरावट |
| 2024-25 | ~$200 मिलियन | दुबई के रास्ते आंशिक बहाली | - भारत का निवेश: भारत ने पिछले दो दशकों में अफगानिस्तान में विकास परियोजनाओं पर $3 बिलियन से अधिक का निवेश किया है। इनमें सलमा बांध (अफगान-भारत मैत्री बांध), زرंज-देलाराम राजमार्ग और काबुल में संसद भवन जैसी प्रतिष्ठित परियोजनाएं शामिल हैं। इन परियोजनाओं की सुरक्षा और रखरखाव भारत के लिए एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय है।
- मानवीय सहायता: भारत ने संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) के सहयोग से अफगानिस्तान को लगातार सहायता भेजी है। अक्टूबर 2025 तक, कुल 50,000 मीट्रिक टन गेहूं, 13 टन जीवन रक्षक दवाएं, 500,000 कोविड वैक्सीन की खुराक और सर्दियों के कपड़े भेजे जा चुके हैं।
आधिकारिक प्रतिक्रियाएं और बयान
इस यात्रा पर दोनों पक्षों की ओर से सधी हुई प्रतिक्रियाएं आई हैं।
- भारत का दृष्टिकोण: भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने एक प्रेस वार्ता में कहा, “यह यात्रा अफगानिस्तान की मौजूदा स्थिति और हमारी चिंताओं, विशेष रूप से आतंकवाद से संबंधित, पर सीधे संवाद करने का एक अवसर है। अफगानिस्तान के लोगों के लिए हमारी मानवीय सहायता जारी रहेगी। तालिबान शासन को मान्यता देने पर हमारा रुख अपरिवर्तित है और यह इस बात पर निर्भर करेगा कि वे महिलाओं के अधिकारों, एक समावेशी सरकार के गठन और आतंकवाद पर अपनी प्रतिबद्धताओं को कैसे पूरा करते हैं।”
- तालिबान का दृष्टिकोण: काबुल में अफगान विदेश मंत्रालय के एक बयान में कहा गया है कि मुत्ताकी की यात्रा का उद्देश्य “भारत के साथ एक नए अध्याय की शुरुआत करना” है। बयान में कहा गया, “हम भारत को एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय शक्ति के रूप में देखते हैं और आर्थिक, राजनीतिक और मानवीय क्षेत्रों में सकारात्मक संबंध चाहते हैं।”
विशेषज्ञ विश्लेषण
नई दिल्ली स्थित ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) में विदेश नीति के विशेषज्ञ डॉ. हर्षवर्धन त्रिपाठी के अनुसार, यह यात्रा भारत की विदेश नीति में एक यथार्थवादी बदलाव का संकेत है।
“भारत अब अफगानिस्तान में चीन और पाकिस्तान द्वारा छोड़े गए रणनीतिक शून्य को भरने की निष्क्रियता का जोखिम नहीं उठा सकता है। यह मान्यता नहीं है, बल्कि अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए एक आवश्यक संवाद है। भारत मानवीय सहायता का उपयोग तालिबान पर आतंकवाद और मानवाधिकारों के मुद्दों पर दबाव बनाने के लिए एक उपकरण के रूप में कर रहा है। यह एक बहुत ही सधा हुआ कूटनीतिक कदम है।”
आम लोगों पर प्रभाव: उम्मीद की एक किरण
यह यात्रा भारत में रह रहे अफगान नागरिकों और उन व्यापारियों के लिए उम्मीद की किरण लेकर आई है जिनके कारोबार दोनों देशों के बीच संबंधों में खटास आने से प्रभावित हुए हैं।
दिल्ली में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे 24 वर्षीय अफगान छात्र, अहमद वली (बदला हुआ नाम) ने कहा, “हमारा परिवार काबुल में है। वीजा और यात्रा प्रतिबंधों के कारण पिछले तीन सालों से अनिश्चितता बनी हुई है। अगर इस यात्रा से दोनों देशों के बीच सीधी उड़ानें फिर से शुरू होती हैं और कांसुलर सेवाएं बेहतर होती हैं, तो यह हम जैसे हजारों छात्रों और परिवारों के लिए एक बड़ी राहत होगी।”
आगे क्या?
इस यात्रा के परिणामों पर सबकी नजर रहेगी। आने वाले दिनों में इन प्रमुख बिंदुओं पर ध्यान दिया जाएगा:
- संयुक्त बयान: क्या यात्रा के अंत में कोई संयुक्त बयान या समझौता ज्ञापन जारी किया जाएगा?
- व्यापार मार्ग: क्या वाघा सीमा के माध्यम से भूमि व्यापार मार्ग को फिर से खोलने पर कोई प्रगति होगी?
- राजनयिक उपस्थिति: क्या भारत काबुल में अपनी “तकनीकी टीम” का दर्जा बढ़ाकर एक पूर्ण कांसुलर कार्यालय करेगा?
- अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया: इस यात्रा पर अमेरिका, चीन और पाकिस्तान की क्या प्रतिक्रिया होगी?
निष्कर्ष
अमीर खान मुत्ताकी की भारत यात्रा निस्संदेह एक ऐतिहासिक घटना है जो दक्षिण एशिया की जटिल भू-राजनीति में एक नए चरण का संकेत देती है। यह भारत के लिए एक कूटनीतिक रस्सी पर चलने जैसा है, जहां उसे अपने सुरक्षा हितों, मानवीय प्रतिबद्धताओं और लोकतांत्रिक मूल्यों के बीच संतुलन बनाना होगा। जबकि तालिबान के साथ पूर्ण राजनयिक सामान्यीकरण अभी भी दूर की कौड़ी लग सकता है, यह यात्रा स्पष्ट रूप से दिखाती है कि नई दिल्ली अब काबुल के साथ सीधे और व्यावहारिक रूप से जुड़ने के लिए तैयार है, बजाय इसके कि वह दूर से घटनाओं को देखता रहे।