गुजरात और उत्तर प्रदेश एटीएस ने एक संयुक्त, हाई-रिस्क ऑपरेशन में एक बड़े ‘व्हाइट-कॉलर’ आतंकी मॉड्यूल का पर्दाफाश किया है, जो अयोध्या में राम मंदिर (Ayodhya terror plot) पर रासायनिक हमले की योजना बना रहा था। इस सनसनीखेज साज़िश के केंद्र में लखनऊ की एक महिला डॉक्टर, डॉ. शाहीन शाहिद (उर्फ सईद) का नाम है, जिसे जैश-ए-मोहम्मद (JeM) की महिला विंग का नेतृत्व करने का काम सौंपा गया था।
मुख्य तथ्य (Quick Take)
- मुख्य साज़िश: अयोध्या में 25 नवंबर को राम मंदिर पर ‘केमिकल अटैक’ (ज़हरीले राइसिन से प्रसाद को दूषित करना) की योजना थी।
- सरगना: डॉ. शाहीन शाहिद, एक पूर्व मेडिकल कॉलेज लेक्चरर, पर भारत में जैश-ए-मोहम्मद की महिला विंग ‘जमात-उल-मोमिनीन’ स्थापित करने का आरोप है।
- गिरफ्तारियां: डॉ. शाहीन, उसके भाई डॉ. परवेज़ अंसारी (लखनऊ से) और फरीदाबाद के एक मेडिकल कॉलेज से जुड़े डॉ. मुज़म्मिल अहमद गनाई समेत कई संदिग्धों को गिरफ्तार किया गया है।
- बरामदगी: डॉ. मुज़म्मिल के फरीदाबाद स्थित ठिकानों से 2,900 किलोग्राम विस्फोटक और ज्वलनशील पदार्थ बरामद हुए।
- बड़ा नेटवर्क: यह मॉड्यूल दिल्ली के लाल किला के पास हुए हालिया कार ब्लास्ट से भी जुड़ा है और दिल्ली में 26/11 जैसा ‘स्पेक्टकुलर अटैक’ (मॉल, रेलवे स्टेशन, इंडिया गेट पर) करने की फिराक में था।
क्या थी अयोध्या पर हमले की पूरी साज़िश?
खुफिया एजेंसियों के लिए यह सिर्फ एक और आतंकी योजना नहीं थी, बल्कि आतंक के बदलते चेहरे का एक भयावह सबूत थी। गुजरात और यूपी एटीएस (UP ATS) को मिले इनपुट के अनुसार, इस मॉड्यूल का मुख्य निशाना अयोध्या थी।
जाँच से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि योजना 25 नवंबर को हमले को अंजाम देने की थी, जिस दिन मंदिर परिसर में एक विशेष ध्वजारोहण कार्यक्रम होना था ।
आतंकियों का तरीका बेहद घिनौना था। वे ‘प्रसाद’ में राइसिन (Ricin) जैसा घातक ज़हर मिलाने की योजना बना रहे थे। राइसिन एक अत्यधिक विषैला पदार्थ है, जिसका कोई ज्ञात एंटीडोट नहीं है और यह बड़े पैमाने पर मौत का कारण बन सकता है। इसके अलावा, अयोध्या के प्रमुख स्थानों पर IED विस्फोटों की भी योजना थी।
यह साज़िश कितनी बड़ी थी, इसका अंदाज़ा इस बात से लगता है कि अयोध्या के अलावा, दिल्ली में इंडिया गेट, प्रमुख रेलवे स्टेशन और भीड़-भाड़ वाले मॉल भी इनके निशाने पर थे। मॉड्यूल ने इस पूरे ऑपरेशन को 26/11 मुंबई हमले जैसा “स्पेक्टकुलर अटैक” (यानी एक बड़ा और दहला देने वाला हमला) कोडनेम दिया था।
‘डॉक्टर शाहीन’: एक प्रोफेसर से JeM की रिक्रूटर तक
इस पूरे ‘व्हाइट-कॉलर’ टेरर नेटवर्क की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी डॉ. शाहीन शाहिद है। उसका प्रोफ़ाइल किसी भी सुरक्षा एजेंसी के लिए एक बुरे सपने जैसा है: एक उच्च-शिक्षित पेशेवर जो पर्दे के पीछे रहकर आतंक का नेटवर्क चला रही थी।
- पृष्ठभूमि: डॉ. शाहीन शाहिद (उर्फ सिद्दीकी) ने लगभग 25 साल पहले प्रयागराज से मेडिकल की पढ़ाई पूरी की। वह 2006 में उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (UPPSC) के माध्यम से चुनी गई और कानपुर के गणेश शंकर विद्यार्थी मेडिकल कॉलेज (GSVM) में लेक्चरर (असिस्टेंट प्रोफेसर) बनी।
- संदिग्ध गतिविधियां: GSVM के रिकॉर्ड के मुताबिक, डॉ. शाहीन 2013 में अचानक “अनधिकृत छुट्टी” पर चली गई और कभी वापस नहीं लौटी। कई नोटिसों के बावजूद संपर्क न करने पर, राज्य सरकार ने 2021 में उसकी सेवाएं समाप्त कर दी थीं।
- नया मिशन: जाँच एजेंसियों का मानना है कि इस अवधि के दौरान वह पूरी तरह से कट्टरपंथी बन गई। उसे पाकिस्तान स्थित जैश-ए-मोहम्मद के आकाओं (संभवतः JeM प्रमुख मसूद अज़हर की बहन सादिया अज़हर) द्वारा भारत में ‘जमात-उल-मोमिनीन’ (JeM की महिला विंग) स्थापित करने का काम सौंपा गया था।
- भूमिका: वह अपने मेडिकल credentials और पेशेवर नेटवर्क का इस्तेमाल संदेह से बचने और मॉड्यूल के लिए रसद (लॉजिस्टिक्स) व सुरक्षित ठिकानों (सेफ हाउस) का प्रबंधन करने के लिए करती थी।
एक ‘व्हाइट-कॉलर’ मॉड्यूल का पर्दाफाश
यह मॉड्यूल डॉक्टरों, मौलवियों और अन्य पेशेवरों का एक घातक गठजोड़ था।
जाँच की कड़ियाँ कैसे जुड़ीं?
इस पूरे नेटवर्क का सुराग 19 अक्टूबर 2025 को श्रीनगर के नौगाम-बुनपोरा इलाके में लगे जैश-ए-मोहम्मद के पोस्टरों से मिलना शुरू हुआ (स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया)। इन पोस्टरों की जाँच करते हुए डिजिटल फुटप्रिंट्स के आधार पर एजेंसियां हरियाणा और यूपी में सक्रिय गुर्गों तक पहुँचीं।
- पहली बड़ी गिरफ्तारी: फरीदाबाद के एक मेडिकल कॉलेज में काम करने वाले पुलवामा के डॉक्टर मुज़म्मिल अहमद गनाई को गिरफ्तार किया गया।
- विस्फोटक बरामद: डॉ. मुज़म्मिल के फरीदाबाद स्थित दो किराए के कमरों से 2,900 किलोग्राम विस्फोटक और ज्वलनशील सामग्री का एक विशाल ज़खीरा बरामद हुआ।
- लाल किला ब्लास्ट कनेक्शन: माना जा रहा है कि यह मॉड्यूल दिल्ली के लाल किले के पास हुए हालिया कार ब्लास्ट के लिए ज़िम्मेदार है, जिसमें 10 लोग मारे गए थे।
- शाहीन और परवेज़: डॉ. मुज़म्मिल से पूछताछ में डॉ. शाहीन की संलिप्तता और JeM की महिला विंग के साथ उसके समन्वय का खुलासा हुआ। इसके बाद, 11 नवंबर को डॉ. शाहीन को हिरासत में ले लिया गया। मंगलवार (12 नवंबर) को यूपी एटीएस ने लखनऊ के मड़ियांव इलाके में डॉ. शाहीन के भाई डॉ. परवेज़ अंसारी के घर पर भी छापा मारा।
आँकड़े और बरामदगी (Data & Recoveries)
इस मॉड्यूल के पैमाने को समझने के लिए ये आँकड़े महत्वपूर्ण हैं:
- 2,900 किलो: डॉ. मुज़म्मिल के ठिकाने से बरामद विस्फोटक और ज्वलनशील पदार्थ।
- 6 फोन, 3 चाकू: डॉ. परवेज़ अंसारी (शाहीन का भाई) के लखनऊ स्थित घर से 6 कीपैड वाले मोबाइल फोन, 3 चाकू और एक अंतरराष्ट्रीय कॉलिंग कार्ड बरामद हुआ।
- 3 वाहन: मॉड्यूल ने हमलों के लिए 3 वाहन खरीदे थे – एक i20, एक लाल फोर्ड इकोस्पोर्ट और एक ब्रेज़ा। i20 कार का इस्तेमाल लाल किले के पास हुए विस्फोट में किया गया था।
आधिकारिक प्रतिक्रिया और विशेषज्ञ विश्लेषण
जाँच से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने इसे “एक गहन ‘फॉरवर्ड-एंड-बैकवर्ड’ प्रयास के रूप में वर्णित किया, जिसने श्रृंखला में हर कड़ी का नक्शा तैयार किया,” यह देखते हुए कि ऑपरेशन ने “चिकित्सकों, एक मौलवी और कट्टरपंथी गुर्गों को शामिल करने वाले एक परिष्कृत क्रॉस-स्टेट ‘व्हाइट-कॉलर’ मॉड्यूल” को उजागर किया।
सहकर्मी हैरान
डॉ. शाहीन के पूर्व सहकर्मी इस खुलासे से स्तब्ध हैं। कानपुर मेडिकल कॉलेज के एक वरिष्ठ प्रोफेसर ने नाम न छापने की शर्त पर कहा:
“जब से उसका नाम इस आतंकी मामले में सामने आया है, यहाँ हर कोई हैरान है। वह शांत, अनुशासित थी और किसी ने कभी नहीं सोचा था कि वह इस तरह के गंभीर मामले में शामिल हो सकती है।”
आगे क्या?
यह स्पष्ट है कि यह केवल उत्तर प्रदेश या दिल्ली तक सीमित साज़िश नहीं थी। यह एक अंतर-राज्यीय और अंतर्राष्ट्रीय आतंकी योजना थी जिसे तुर्किये में 2022 में रचा गया था (स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया)। मामले की गंभीरता को देखते हुए, राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) ने अब औपचारिक रूप से इस केस को अपने हाथ में ले लिया है।
एनआईए अब डॉ. शाहीन के अकादमिक रिकॉर्ड, संचार इतिहास और लखनऊ, कानपुर और फरीदाबाद में उसके संपर्कों के नेटवर्क की जाँच कर रही है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि इस ‘व्हाइट-कॉलर’ नेटवर्क की जड़ें कितनी गहरी हैं।
निष्कर्ष
डॉ. शाहीन की गिरफ्तारी और अयोध्या पर रासायनिक हमले की इस साज़िश का पर्दाफाश भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक बड़ी चेतावनी है। यह दर्शाता है कि आतंक अब केवल अशिक्षित, गुमराह युवाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज के सबसे शिक्षित और सम्मानित पेशों में भी अपनी पैठ बना चुका है। एटीएस की सतर्कता ने एक राष्ट्रीय आपदा को टाल दिया है, लेकिन ‘व्हाइट-कॉलर’ आतंक की यह नई चुनौती सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक दीर्घकालिक सिरदर्द बनी रहेगी।
