
नई दिल्ली, 27 अगस्त 2025—दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के छात्रों पर निजी स्कूलों द्वारा महंगी किताबें थोपे जाने के मामले में दिल्ली सरकार, केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) और राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान व प्रशिक्षण परिषद (NCERT) को नोटिस जारी किया। अदालत ने सभी पक्षों से चार सप्ताह में विस्तृत जवाब मांगा है और अगली सुनवाई 12 नवंबर 2025 के लिए सूचीबद्ध की है।
पीठ के समक्ष दायर जनहित याचिका में शिक्षा नीति शोधकर्ता जसमी त सिंह साहनी ने आरोप लगाया कि कई निजी स्कूल EWS छात्रों को निजी प्रकाशकों की सालाना ₹10,000-₹12,000 की किताबें व सामग्री खरीदने के लिए मजबूर करते हैं। यह खर्च उन परिवारों की सामर्थ्य से परे है, जबकि वही पाठ्यक्रम NCERT पुस्तकों से केवल लगभग ₹700 में पूरा हो सकता है।
याचिकाकर्ता का तर्क है कि दिल्ली सरकार EWS विद्यार्थियों को मात्र ₹5,000 वार्षिक प्रतिपूर्ति देती है, जिससे किताबों के वास्तविक खर्च और सरकारी सहायता के बीच गहरा अंतर पैदा होता है। इस वजह से कई अभिभावक बच्चों का दाखिला वापस लेने पर मजबूर हो रहे हैं, जिससे शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम की धारा 12(1)(c) में निर्धारित 25 प्रतिशत आरक्षण का उद्देश्य विफल हो रहा है।
अदालत को बताया गया कि CBSE ने 2016-17 में ही निर्देश जारी कर दिए थे कि संबद्ध विद्यालय सिर्फ NCERT की किताबें ही अपनाएँ, फिर भी निजी संस्थान महंगे निजी प्रकाशकों की पुस्तकें बेच रहे हैं। याचिका में इसे शिक्षा के व्यावसायीकरण और नियामकीय अवमानना का सीधा उदाहरण बताया गया है।
मामले में स्वास्थ्य संबंधी गंभीर पहलू भी उठे। याचिका के मुताबिक स्कूल बैग नीति 2020 में बैग का वजन छात्र के शरीर के वजन के अधिकतम 10 प्रतिशत तक सीमित करने की सिफारिश है, मगर पुस्तकों की अनिवार्यता के कारण EWS बच्चे प्रतिदिन 6-8 किलोग्राम तक भार ढोने को विवश हैं। इससे उनके शारीरिक विकास और मनोवैज्ञानिक स्थिति दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
अधिवक्ता अमित प्रसाद ने दलील दी कि केवल किताबों का अतिरिक्त व्यय ही नहीं, बल्कि कॉपी, स्टेशनरी, स्मार्ट कार्ड और अन्य सामग्री पर भी अनावश्यक शुल्क लिया जा रहा है। उनका कहना है कि पूरी प्रणाली ने लगभग ₹55,000 करोड़ रुपये की समानांतर अर्थव्यवस्था बना ली है, जो माता-पिता के आर्थिक दोहन पर आधारित है।
याचिकाकर्ता ने अदालत से अनुरोध किया कि वह
- सभी CBSE विद्यालयों में केवल NCERT पाठ्यपुस्तकों के उपयोग को बाध्यकारी बनाने,
- ‘फिक्स्ड रेट-फिक्स्ड वेट’ नामक मूल्य और वजन सीमा नीति लागू करने,
- और उल्लंघन करने वाले स्कूलों पर दंडात्मक कार्रवाई सुनिश्चित करने के निर्देश जारी करे।
मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने याचिका को गंभीर बताते हुए कहा कि यदि आरोप सही पाए गए तो यह समावेशी शिक्षा की अवधारणा पर प्रतिकूल असर डालता है और EWS बच्चों को व्यवस्थित बहिष्कार की ओर धकेलता है।
अब निगाहें सरकार, CBSE और NCERT के लिखित जवाब पर टिकी हैं, जिनसे अदालत को तय करना है कि क्या दिल्ली में EWS छात्रों को वास्तव में ‘महंगी किताबों के बोझ’ तले दबाया जा रहा है और इस पर विधिक तथा नीतिगत हस्तक्षेप कितना आवश्यक है।