भारत में सबसे धूमधाम से मनाए जाने वाले त्योहारों में से एक गणेश चतुर्थी इस वर्ष 27 अगस्त 2025 को मनाई जाएगी। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर आने वाला यह पावन पर्व पूरे देश में अपार उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस बार गणपति बप्पा की स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 7 मिनट से दोपहर 1 बजकर 33 मिनट तक का रहेगा, जो कुल 2 घंटे 26 मिनट का अवधि होगी।
पंचांग के अनुसार इस साल चतुर्थी तिथि 26 अगस्त की रात 12 बजकर 50 मिनट से शुरू होकर 27 अगस्त की रात 1 बजकर 15 मिनट तक रहेगी। उदयाकाल व्याप्ति के नियम के अनुसार, चूंकि चतुर्थी तिथि 27 अगस्त के सूर्योदय के समय विद्यमान रहेगी, इसलिए गणेश चतुर्थी का मुख्य उत्सव 27 अगस्त को ही मनाया जाएगा। यही कारण है कि इस बार 26 और 27 अगस्त की तारीख को लेकर कोई भ्रम नहीं रह जाना चाहिए।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार गणेश स्थापना के लिए सबसे उत्तम समय मध्याह्न काल माना जाता है। 27 अगस्त को मध्याह्न गणेश पूजा का मुहूर्त दोपहर 11:07 से 1:33 तक का रहेगा। इस समयावधि में गणपति बप्पा की प्राण प्रतिष्ठा करना अत्यंत शुभकारी माना गया है। पंडितों के अनुसार इस मुहूर्त में स्थापित गणेश मूर्ति घर में सुख, समृद्धि और मंगलकामनाओं की पूर्ति करती है।
गणेश चतुर्थी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद गणपति बप्पा की स्थापना की जाती है। पारंपरिक रूप से घरों में मिट्टी की गणेश मूर्ति स्थापित करने का रिवाज है। स्थापना से पहले घर की पूरी साफ-सफाई करना और पूजा स्थान को सजाना अनिवार्य माना जाता है। लाल या पीले रंग के कपड़े से मंडप तैयार करना, केले के पत्तों से सजावट करना और गेंदे के फूलों की माला लगाना गणेश उत्सव की पारंपरिक तैयारियों में शामिल है।
पूजा विधि की शुरुआत गणपति बप्पा का स्वागत करते हुए ‘गणपति बप्पा मोरया’ के जयकारे लगाने से होती है। उसके बाद षोडशोपचार पूजा की जाती है, जिसमें गणेश जी को जल अर्पित करना, चंदन का तिलक लगाना, अक्षत चढ़ाना, फूल अर्पित करना, धूप-दीप जलाना और नैवेद्य चढ़ाना शामिल है। गणेश चतुर्थी के दिन विशेष रूप से मोदक, लड्डू, पुरन पोली और करंजी का भोग लगाया जाता है। दूर्वा घास चढ़ाना गणेश पूजा का विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यह गणपति बप्पा को अत्यंत प्रिय मानी जाती है।
महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी का उत्सव सबसे भव्य रूप में मनाया जाता है। मुंबई के लालबागचा राजा, गणेशगल्ली का राजा और गिरगांव का राजा जैसी प्रसिद्ध मूर्तियों के दर्शन के लिए लाखों श्रद्धालु आते हैं। इन सार्वजनिक उत्सवों की शुरुआत स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने की थी। उन्होंने गणेश उत्सव को सामाजिक एकता और राष्ट्रीय चेतना जगाने का माध्यम बनाया था।
आज के समय में पर्यावरण की चिंता को देखते हुए मिट्टी की गणेश मूर्तियों का चलन बढ़ रहा है। प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी मूर्तियां पानी में घुलने में अधिक समय लेती हैं और जल प्रदूषण का कारण बनती हैं। इसलिए पर्यावरण संरक्षण के लिए शुद्ध मिट्टी, गोबर या आटे से बनी गणेश मूर्तियों को प्राथमिकता दी जा रही है। कई स्थानों पर कृत्रिम तालाब बनाकर विसर्जन की व्यवस्था भी की जा रही है।
गणेश चतुर्थी का त्योहार केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी है। इस अवसर पर पूरे समुदाय मिलकर उत्सव मनाते हैं। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी इस त्योहार में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। गणेश मंडलों का आयोजन, सांस्कृतिक कार्यक्रम, भजन-कीर्तन और सामुदायिक भोज का आयोजन इस त्योहार की विशेषताएं हैं।
व्यापारिक दृष्टि से भी गणेश चतुर्थी का बहुत महत्व है। इस समय मिठाइयों की दुकानों, फूल बेचने वालों, सजावट का सामान बनाने वाले कारीगरों और मूर्तिकारों का धंधा चरम पर होता है। हजारों लोगों को इस त्योहार से रोजगार मिलता है। मुंबई, पुणे, नागपुर, हैदराबाद और अन्य शहरों में गणेश उत्सव के दौरान करोड़ों रुपये का व्यापार होता है।
स्वास्थ्य के नजरिए से गणेश चतुर्थी के दौरान कुछ सावधानियां भी जरूरी हैं। भीड़भाड़ वाले स्थानों पर जाते समय सामाजिक दूरी का पालन करना, साफ-सुथरा खाना खाना और पानी की गुणवत्ता का ख्याल रखना आवश्यक है। छोटे बच्चों और बुजुर्गों को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए।
तकनीकी युग में गणेश उत्सव भी डिजिटल हो गया है। ऑनलाइन पूजा, लाइव स्ट्रीमिंग और मोबाइल ऐप्स के जरिए लोग दूर बैठे भी उत्सव में शामिल हो रहे हैं। कई मंडल अपने कार्यक्रम सोशल मीडिया पर लाइव करते हैं, जिससे विदेशों में रहने वाले भारतीय भी जुड़ाव महसूस करते हैं।
आगामी वर्षों में गणेश चतुर्थी की तारीखें भी जानना रोचक होगा। 2026 में यह त्योहार 17 सितंबर को मनाया जाएगा, जबकि 2027 में 6 सितंबर को और 2028 में 25 अगस्त को गणेश चतुर्थी आएगी। हिंदू पंचांग के अनुसार चांद्र कैलेंडर के आधार पर इन तारीखों में बदलाव होता रहता है।
गणपति विसर्जन की परंपरा भी इस त्योहार का अहम हिस्सा है। एक दिन, तीन दिन, पांच दिन, सात दिन या ग्यारह दिन के बाद गणेश जी का विसर्जन किया जाता है। अनंत चतुर्दशी के दिन सबसे भव्य विसर्जन होता है। इस समय ‘गणपति बप्पा मोरया, मंगलमूर्ति मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ’ के नारों से पूरा वातावरण गूंज उठता है।
आधुनिक समय में गणेश चतुर्थी सिर्फ हिंदू धर्म के अनुयायियों तक सीमित नहीं रही है। अन्य धर्मों के लोग भी इस त्योहार में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। यह भारत की धर्मनिरपेक्षता और सामासिक संस्कृति का उत्कृष्ट उदाहरण है। गणेश उत्सव के दौरान दिखने वाली एकता और सद्भावना समाज में शांति और सौहार्द्र बनाए रखने में योगदान देती है।
इस प्रकार गणेश चतुर्थी 2025 का यह पावन त्योहार 27 अगस्त को दोपहर के शुभ मुहूर्त में मनाया जाना सभी भक्तों के लिए खुशी की बात है। सही मुहूर्त में गणपति बप्पा की स्थापना करके, विधि-विधान से पूजा करके और पर्यावरण का ख्याल रखते हुए इस त्योहार को मनाना चाहिए। गणेश चतुर्थी सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करने, नई शुरुआत करने और सामाजिक एकता बढ़ाने का अवसर है।