क्या आपने कभी महसूस किया है कि आपका गुस्सा, चिंता या उदासी आप पर हावी हो रही है? क्या कभी ऐसा लगा है कि आप अपनी भावनाओं के गुलाम बन गए हैं? अगर हाँ, तो आप अकेले नहीं हैं। आज की भागदौड़ भरी दुनिया में, हममें से ज़्यादातर लोग अपने इमोशंस को मैनेज करने के लिए संघर्ष करते हैं।
लेकिन क्या हो अगर आपको पता चले कि भावनाओं पर काबू पाना संभव है? इसका एक वैज्ञानिक तरीका भी मौजूद है। प्रसिद्ध न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. श्वेता अदातिया ने राज शामानी के साथ बातचीत में इसी से जुड़ा एक शक्तिशाली रहस्य साझा किया है। यह रहस्य हमारे दिमाग के काम करने के तरीके पर आधारित है। इस लेख में हम डॉ. अदातिया के बताए तरीकों की गहराई से पड़ताल करेंगे। हम विज्ञान की मदद से समझेंगे कि आप अपनी भावनाओं के मालिक कैसे बन सकते हैं।
भावनात्मक स्वास्थ्य को समझना आज पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर लगभग एक अरब लोग मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के साथ जी रहे हैं। यह लेख आपको उन व्यावहारिक तरीकों से लैस करेगा जो आपके जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं।
कौन हैं डॉ. श्वेता अदातिया? विशेषज्ञता जो विश्वास जगाती है
इससे पहले कि हम उनके बताए रहस्य को जानें, यह समझना ज़रूरी है कि यह सलाह कहाँ से आ रही है। डॉ. श्वेता अदातिया एक जानी-मानी न्यूरोलॉजिस्ट (मस्तिष्क विशेषज्ञ) हैं। उनके पास दो दशकों से अधिक का अनुभव है। उन्होंने भारत, सिंगापुर और कनाडा जैसे देशों में काम किया है और मानव मस्तिष्क की जटिलताओं पर गहन शोध किया है।
उनकी विशेषज्ञता सिर्फ मस्तिष्क रोगों तक सीमित नहीं है। वे इस बात पर भी ध्यान केंद्रित करती हैं कि हमारा दिमाग हमारी सोच, व्यवहार और भावनाओं को कैसे प्रभावित करता है। जब एक न्यूरोलॉजिस्ट भावनाओं की बात करता है, तो वह सिर्फ एक मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण नहीं देता। वह एक ठोस वैज्ञानिक आधार प्रदान करता है। इससे यह विषय और भी विश्वसनीय बन जाता है।
भावनाओं का विज्ञान: आपका दिमाग असल में कैसे काम करता है?
भावनाओं को नियंत्रित करने के लिए, हमें पहले यह समझना होगा कि वे उत्पन्न कहाँ से होती हैं। डॉ. अदातिया समझाती हैं कि भावनाएं हमारे मस्तिष्क के एक जटिल नेटवर्क का परिणाम हैं। इसे समझने के लिए, हम मस्तिष्क को दो मुख्य भागों में बाँट सकते हैं:
भावनात्मक मस्तिष्क (The Limbic System)
यह हमारे मस्तिष्क का प्राचीन हिस्सा है। यह भावनाओं और यादों के लिए ज़िम्मेदार होता है। इसमें दो मुख्य खिलाड़ी हैं:
- एमिग्डाला (Amygdala): इसे आप अपने दिमाग का “अलार्म सिस्टम” समझ सकते हैं। जब भी कोई संभावित खतरा होता है, तो एमिग्डाला तुरंत सक्रिय हो जाता है। यह ‘लड़ो या भागो’ (fight-or-flight) प्रतिक्रिया शुरू कर देता है।
- हिप्पोकैम्पस (Hippocampus): यह हिस्सा हमारी यादों को संग्रहीत करता है। यह एमिग्डाला को बताता है कि क्या कोई मौजूदा स्थिति अतीत के किसी खतरे से मिलती-जुलती है। इससे हमारी भावनात्मक प्रतिक्रिया और तेज़ हो सकती है।
तर्कसंगत मस्तिष्क (The Prefrontal Cortex)
यह मस्तिष्क का सबसे विकसित हिस्सा है। यह हमारे माथे के ठीक पीछे स्थित होता है। इसे आप अपने दिमाग का “CEO” कह सकते हैं। इसका काम तर्क करना, निर्णय लेना और आवेगों को नियंत्रित करना है। यह एमिग्डाला से आने वाले भावनात्मक संकेतों को भी शांत करता है।
समस्या तब पैदा होती है जब हमारा अलार्म सिस्टम (एमिग्डाला) बहुत ज़्यादा हावी हो जाता है। यह हमारे CEO (प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स) को ओवरराइड कर देता है। इस स्थिति को “एमिग्डाला हाइजैक” (Amygdala Hijack) कहते हैं। यही वह क्षण है जब हम गुस्से में कुछ ऐसा कह या कर जाते हैं, जिसका हमें बाद में पछतावा होता है।
डॉ. अदातिया का “मास्टर सीक्रेट”: विचार, भावना और व्यवहार का कनेक्शन
राज शामानी के साथ बातचीत में डॉ. अदातिया ने एक सरल लेकिन शक्तिशाली सिद्धांत पर ज़ोर दिया। यह सिद्धांत मनोविज्ञान में संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी (CBT) का आधार माना जाता है। यह इस बात पर आधारित है कि हमारे साथ क्या होता है, यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है। ज़्यादा महत्वपूर्ण यह है कि हम उस स्थिति पर प्रतिक्रिया कैसे करते हैं।
घटना और प्रतिक्रिया के बीच का ‘पॉज़’
मास्टर सीक्रेट है: किसी भी घटना (Stimulus) और आपकी प्रतिक्रिया (Response) के बीच एक खाली जगह (Space) होती है। उस खाली जगह में अपनी प्रतिक्रिया चुनने की शक्ति ही आपकी असली आज़ादी है। सरल शब्दों में कहें तो, कुछ भी होने पर तुरंत रिएक्ट करने की बजाय, एक पल के लिए रुकें और सोचें। यही ‘पॉज़’ या ठहराव आपको नियंत्रण देता है।
इस सिद्धांत को एक उदाहरण से समझें
आइए इस सिद्धांत को एक वास्तविक जीवन की स्थिति से समझते हैं।
- घटना (Event): आपके बॉस ने आपकी सबके सामने आलोचना की।
बिना ‘पॉज़’ के स्वतःस्फूर्त प्रतिक्रिया:
- विचार: “मेरी कोई इज़्ज़त नहीं है। मैं किसी काम का नहीं हूँ।”
- भावना: शर्म, गुस्सा, उदासी।
- व्यवहार: चुप हो जाना, घर जाकर चिड़चिड़ापन दिखाना।
‘पॉज़’ के साथ सचेत प्रतिक्रिया:
- (यहाँ रुकें – Pause – यही वह खाली जगह है)
- जागरूकता: अपने विचार को पहचानें। “मेरे मन में यह विचार आ रहा है कि मैं किसी काम का नहीं हूँ।”
- चुनौती दें: क्या यह सच है? शायद बॉस का फीडबैक देने का तरीका गलत था, पर उनका इरादा मुझे सुधारना हो सकता है।
- नया विचार चुनें: “यह एक फीडबैक है। मैं इससे सीखकर बेहतर बन सकता हूँ।”
- नई भावना: प्रेरणा, सीखने की इच्छा।
- नया व्यवहार: बॉस से मिलकर फीडबैक को समझना, अपने काम में सुधार करना।
यह “रुकने” और “चुनने” की क्षमता ही भावनाओं पर महारत हासिल करने का मूल मंत्र है।
भावनाओं को नियंत्रित करने के वैज्ञानिक और व्यावहारिक तरीके
डॉ. अदातिया का बताया गया सिद्धांत शक्तिशाली है, लेकिन इसे जीवन में उतारने के लिए निरंतर अभ्यास की ज़रूरत होती है। नीचे कुछ वैज्ञानिक रूप से सिद्ध तकनीकें दी गई हैं जो आपको उस “खाली जगह” को बनाने और उपयोग करने में मदद करेंगी।
1. माइंडफुलनेस और ध्यान (Mindfulness and Meditation)
माइंडफुलनेस का अर्थ है वर्तमान क्षण में पूरी तरह से उपस्थित रहना। हार्वर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया है कि नियमित ध्यान से मस्तिष्क की संरचना बदल सकती है। यह अभ्यास एमिग्डाला की गतिविधि को कम करता है और प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स को मजबूत बनाता है।
- कैसे करें: हर दिन 10 मिनट शांत जगह पर बैठें। अपनी सांसों पर ध्यान केंद्रित करें।
2. जर्नलिंग: अपने विचारों को कागज़ पर उतारें
जब आप अपने विचारों और भावनाओं को लिखते हैं, तो आप उन्हें बेहतर ढंग से समझ पाते हैं। अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन (APA) के अनुसार, एक्सप्रेसिव राइटिंग तनाव को कम करने में प्रभावी है।
- कैसे करें: हर रात सोने से पहले, अपने विचारों और भावनाओं को एक डायरी में लिखें।
3. शारीरिक गतिविधि का महत्व
व्यायाम आपके दिमाग के लिए चमत्कार कर सकता है। यह एंडोर्फिन (endorphins) नामक रसायन छोड़ता है, जो मूड को बेहतर बनाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की गाइडलाइन्स के अनुसार, वयस्कों को हर हफ़्ते कम से कम 150-300 मिनट व्यायाम करना चाहिए।
- कैसे करें: रोज़ 30 मिनट टहलना, दौड़ना या योग करना शुरू करें।
4. पर्याप्त नींद क्यों ज़रूरी है?
नींद की कमी आपके भावनात्मक संतुलन को बुरी तरह प्रभावित कर सकती है। अमेरिका के सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) के अनुसार, वयस्कों को हर रात 7-9 घंटे की नींद की ज़रूरत होती है। जब आप थके होते हैं तो आप अधिक चिड़चिड़े हो जाते हैं।
- कैसे करें: एक नियमित नींद का शेड्यूल बनाएं और सोने से एक घंटा पहले स्क्रीन से दूर रहें।
इमोशनल इंटेलिजेंस (EQ): सफलता और रिश्तों की कुंजी
जब आप इन तकनीकों पर काम करना शुरू करते हैं, तो आप अपनी इमोशनल इंटेलिजेंस (EQ) को बढ़ाते हैं। यह भावनाओं को समझने, उपयोग करने और प्रबंधित करने की क्षमता है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की एक रिपोर्ट के अनुसार, इमोशनल इंटेलिजेंस भविष्य के लिए एक महत्वपूर्ण कौशल है। इसे कार्यस्थल के लिए सबसे ज़रूरी कौशलों में से एक माना गया है। जो लोग अपनी भावनाओं को प्रबंधित कर सकते हैं, वे बेहतर लीडर और बेहतर इंसान बनते हैं।
आँकड़े: भारत और दुनिया में भावनात्मक स्वास्थ्य की स्थिति
यह समझना महत्वपूर्ण है कि भावनात्मक स्वास्थ्य केवल एक व्यक्तिगत मुद्दा नहीं है। यह एक वैश्विक चिंता का विषय भी है। नीचे दिए गए आँकड़े इसकी गंभीरता को दर्शाते हैं।
आँकड़ा (Statistic) | विवरण (Description) | स्रोत (Source) |
8 में से 1 व्यक्ति | दुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति के साथ जी रहा है। | WHO, 2022 |
$1 ट्रिलियन प्रति वर्ष | खोई हुई उत्पादकता के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को अवसाद और चिंता की लागत। | The Lancet Commission, 2018 |
लगभग 15% भारतीय वयस्क | किसी न किसी प्रकार की मानसिक स्वास्थ्य समस्या से पीड़ित हैं। | National Mental Health Survey of India, 2015-16 |
74% भारतीय कर्मचारी | प्रोफेशनल बर्नआउट का अनुभव कर रहे हैं। | Deloitte’s Workplace Burnout Survey |
ये आँकड़े इस बात पर ज़ोर देते हैं कि अपनी भावनाओं पर काम करना कितना महत्वपूर्ण है। यह न केवल व्यक्तिगत खुशी के लिए, बल्कि एक स्वस्थ समाज के लिए भी आवश्यक है।
निष्कर्ष: आप अपनी भावनाओं के निर्देशक हैं, दर्शक नहीं
डॉ. श्वेता अदातिया का रहस्य हमें याद दिलाता है कि हम अपनी भावनाओं के प्रति असहाय नहीं हैं। असली शक्ति उस संक्षिप्त क्षण को पहचानने में है जो किसी घटना और हमारी प्रतिक्रिया के बीच मौजूद होता है। उस क्षण में रुककर और एक सचेत प्रतिक्रिया चुनकर, हम अपने जीवन की दिशा बदल सकते हैं।
यह एक यात्रा है, कोई मंजिल नहीं। इसमें समय और धैर्य लगता है। लेकिन हर छोटा कदम आपको अपनी भावनाओं का मालिक बनने के करीब ले जाता है। भावनाओं को दबाना नहीं है, बल्कि उन्हें समझना है। जब आप उन्हें समझना और समझदारी से जवाब देना सीख जाते हैं, तो आप एक अधिक शांतिपूर्ण और सफल जीवन की नींव रखते हैं।