
President Ilham Aliyev met Prime Minister Muhammad Shehbaz Sharif in Tianjin, China.
(Photo credit: Twitter/ @presidentaz)
शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) में अजरबैजान की पूर्ण सदस्यता की राह में भारत ने बड़ी बाधा खड़ी कर दी है। चीन के तियानजिन में 31 अगस्त से 1 सितंबर 2025 तक चले SCO शिखर सम्मेलन के दौरान भारत ने अजरबैजान की पूर्ण सदस्यता के प्रस्ताव को वीटो कर दिया। राजनयिक सूत्रों के अनुसार, भारत ने यह कदम अजरबैजान की पाकिस्तान और तुर्की के साथ बढ़ती नजदीकी को देखते हुए उठाया है। वर्तमान में अजरबैजान SCO में “संवाद भागीदार” का दर्जा रखता है, लेकिन पूर्ण सदस्यता के लिए सभी सदस्य देशों की सहमति आवश्यक है।
अजरबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव ने इस फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए आरोप लगाया है कि भारत ने बहुपक्षीय मंचों पर राजनीति की है। तियानजिन शिखर सम्मेलन के दौरान पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से बातचीत के दौरान अलीयेव ने कहा कि भारत अंतरराष्ट्रीय संगठनों में बाकू से बदला लेने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने दावा किया कि यह कदम पाकिस्तान के साथ अजरबैजान की सहायता के कारण उठाया गया है।
दरअसल, इस विवाद की जड़ें “ऑपरेशन सिंदूर” में छुपी हैं। पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर में आतंकी ठिकानों के खिलाफ यह सैन्य कार्रवाई की थी। इस दौरान अजरबैजान ने पाकिस्तान के समर्थन में बयान जारी करके भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव पर चिंता जताई थी। अजरबैजान गणराज्य ने कहा था कि वह भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव की वृद्धि पर अपनी चिंता व्यक्त करता है।
SCO के भीतर यह भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता व्यापक संघर्ष को दर्शाती है। विश्लेषकों के अनुसार, चीन ने अजरबैजान की सदस्यता का समर्थन किया है, जबकि भारत इसका विरोध करता रहा है। भारत की चिंता यह है कि अजरबैजान का पाकिस्तान के साथ घनिष्ठ संबंध और सैन्य टकराव के दौरान सार्वजनिक समर्थन भारतीय हितों के लिए हानिकारक साबित हो सकता है। बाकू के आलोचकों का तर्क है कि भारत का वीटो SCO के मूलभूत सिद्धांत का उल्लंघन करता है, जिसे “शंघाई स्पिरिट” कहा जाता है।
इस घटनाक्रम से पहले भी भारत-अजरबैजान संबंधों में तनाव के संकेत मिले थे। लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी (LPU) ने हाल ही में तुर्की और अजरबैजान के साथ अपने सभी समझौता ज्ञापन (MoU) रद्द कर दिए थे, जिसकी वजह इन देशों का पाकिस्तान समर्थक रुख बताया गया था। यह कदम भारतीय शैक्षणिक संस्थानों में बढ़ती राष्ट्रवादी भावना का प्रतीक था।
तियानजिन में आयोजित यह SCO शिखर सम्मेलन संगठन के इतिहास का सबसे बड़ा सम्मेलन था। इसमें 20 से अधिक विदेशी नेता और अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधि शामिल हुए थे। समूह के दस सदस्य देश – रूस, भारत, चीन, पाकिस्तान, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, तजाकिस्तान, उजबेकिस्तान और बेलारूस के अलावा पर्यवेक्षक और संवाद भागीदार देश भी शामिल हुए। इनमें अजरबैजान, आर्मेनिया, तुर्की, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात शामिल थे।
दिलचस्प बात यह है कि इस विवाद के बीच पाकिस्तान ने भी राजनयिक गतिविधियां तेज कर दी हैं। पाकिस्तान के विदेश मंत्री मुहम्मद इशाक डार ने हाल ही में आर्मेनिया के विदेश मंत्री अरारत मिर्जोयान से बातचीत की है। दोनों देशों ने आपसी राजनयिक संबंध स्थापित करने पर सहमति जताई है। यह कदम अजरबैजान के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है, क्योंकि आर्मेनिया के साथ उसके ऐतिहासिक विवाद हैं।
भारतीय विदेश नीति के विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला भारत की नई असंदिग्ध नीति का प्रतीक है। भारत अब ऐसे मंचों पर भी सक्रिय भूमिका निभा रहा है जहां पहले वह अपेक्षाकृत निष्क्रिय रहता था। SCO जैसे बहुपक्षीय मंचों में भारत की यह रणनीति दर्शाती है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों के लिए संस्थागत शक्ति का उपयोग करने से नहीं हिचक रहा।
अजरबैजान की स्थिति को समझने के लिए यह जानना आवश्यक है कि वह पिछले कुछ वर्षों में पाकिस्तान और तुर्की के साथ अपने संबंध मजबूत करता रहा है। चीन की वन बेल्ट वन रोड पहल से जुड़े प्रोजेक्ट्स में अजरबैजान की भागीदारी भी भारत की चिंता का कारण बनी है। इन सभी कारकों ने मिलकर भारत की इस नीति को आकार दिया है।
SCO की कार्यप्रणाली के अनुसार, किसी भी नए सदस्य की पूर्ण सदस्यता के लिए सभी मौजूदा सदस्यों की सर्वसम्मति आवश्यक है। भारत के वीटो के कारण अजरबैजान की महत्वाकांक्षा फिलहाल रुक गई है। हालांकि, अलीयेव ने इस झटके को कम करके आंकते हुए कहा है कि भारत के इस कदम का अजरबैजान की विदेश नीति की प्राथमिकताओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
इस घटना का व्यापक भू-राजनीतिक संदर्भ भी महत्वपूर्ण है। दक्षिण एशियाई प्रतिद्वंद्विता अब बहुपक्षीय मंचों में भी फैल रही है। अजरबैजान के लिए यह एक चेतावनी है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में गलत पक्ष चुनने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। वहीं भारत के लिए यह दिखाता है कि वह अपनी बढ़ती शक्ति का उपयोग उन देशों के खिलाफ करने को तैयार है जो इसे पाकिस्तान के पक्ष में खड़े होने वाला मानता है।
भविष्य में यह देखना दिलचस्प होगा कि अजरबैजान अपनी SCO सदस्यता की महत्वाकांक्षा को लेकर क्या रणनीति अपनाता है। क्या वह भारत से संबंध सुधारने की दिशा में कदम उठाएगा या फिर पाकिस्तान और तुर्की के साथ अपने रिश्ते और मजबूत बनाने का रास्ता चुनेगा। इस फैसले का प्रभाव केवल SCO तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि यह व्यापक एशियाई भू-राजनीति को भी प्रभावित करेगा।