भारतीय सशस्त्र बलों ने राजस्थान के थार रेगिस्तान में अपना महत्वाकांक्षी संयुक्त अभ्यास ‘त्रिशूल’ शुरू कर दिया है। 10 नवंबर से जारी यह Indian tri-service exercise Trishul, तीनों सेनाओं (थल सेना, वायु सेना और नौसेना) के बीच अभूतपूर्व एकीकरण और उच्च-तकनीक युद्ध कौशल का प्रदर्शन है, जिसका मुख्य उद्देश्य भविष्य के संघर्षों के लिए एकीकृत थिएटर कमांड की अवधारणा को परखना है।
मुख्य तथ्य: अभ्यास ‘त्रिशूल’ एक नज़र में
- क्या है: ‘त्रिशूल’ एक उच्च-तीव्रता वाला, त्रि-सेवा (Tri-Service) संयुक्त सैन्य अभ्यास है।
- कहाँ: राजस्थान का थार रेगिस्तान, मुख्य रूप से पोखरण फील्ड फायरिंग रेंज के विशाल विस्तार में।
- कौन: भारतीय थल सेना, भारतीय वायु सेना और भारतीय नौसेना के तत्व (विशेष बल और निगरानी संपत्ति)।
- संख्याबल: 40,000 से अधिक सैनिक, 150 से अधिक विमान और नौसेना के निगरानी ड्रोन शामिल हैं। (स्रोत: पीआईबी)
- अवधि: 10 नवंबर से 25 नवंबर, 2025 तक।
- मुख्य फोकस: ‘जॉइंटनेस’ (Jointness) या संयुक्तता, नेटवर्क-केंद्रित युद्ध (Network-Centric Warfare), और इंटीग्रेटेड थिएटर कमांड (ITC) की परिचालन तैयारियों को मान्य करना।
अभ्यास का पैमाना और रणनीतिक उद्देश्य
यह कोई नियमित वार्षिक अभ्यास नहीं है। ‘त्रिशूल’ को इस साल की शुरुआत में हुए ‘भारत शक्ति’ अभ्यास के बाद, भारत के सबसे बड़े त्रि-सेवा अभ्यासों में से एक माना जा रहा है। इसका पैमाना अभूतपूर्व है, जिसमें थल सेना की स्ट्राइक कोर, वायु सेना की पश्चिमी और दक्षिण-पश्चिमी कमान और नौसेना के समुद्री गश्ती विमान और ड्रोन शामिल हैं।
अभ्यास का प्राथमिक उद्देश्य केवल गोलाबारी का प्रदर्शन करना नहीं है, बल्कि “एकीकृत युद्धक्षेत्र” (Integrated Battlefield) की अवधारणा का परीक्षण करना है। रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, इस अभ्यास का डिज़ाइन चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल अनिल चौहान के ‘इंटीग्रेटेड थिएटर कमांड’ (ITC) के महत्वाकांक्षी सुधार एजेंडे के अनुरूप तैयार किया गया है।
इसका लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि तीनों सेनाएँ अलग-अलग इकाइयों के रूप में नहीं, बल्कि एक एकल, एकजुट बल के रूप में लड़ें, जहाँ सूचना और संपत्ति (Assets) को वास्तविक समय में साझा किया जा सके।
‘जॉइंटनेस’ से ‘इंटीग्रेशन’ की ओर
वरिष्ठ रक्षा विश्लेषकों का मानना है कि ‘त्रिशूल’ भारतीय सेना की सोच में एक बड़े बदलाव का प्रतीक है। पहले के अभ्यास ‘जॉइंटनेस’ (एक साथ काम करना) पर केंद्रित होते थे, लेकिन ‘त्रिशूल’ का लक्ष्य ‘इंटीग्रेशन’ (एक होकर काम करना) है।
उदाहरण के लिए, इस अभ्यास में एक ऐसा परिदृश्य शामिल है जहाँ अरब सागर के ऊपर उड़ रहा नौसेना का एक P-8I निगरानी विमान, दुश्मन के टैंकों की स्थिति का पता लगाता है और उस डेटा को सीधे वायु सेना के राफेल या Su-30MKI फाइटर जेट को भेजता है, जो बदले में थल सेना की T-90 टैंक रेजिमेंट के लिए रास्ता साफ करने हेतु सटीक हमला करता है। यह सब कुछ मिनटों के भीतर होता है।
नवीनतम आँकड़े और तकनीकी प्रदर्शन
‘त्रिशूल’ में भारत के शस्त्रागार में मौजूद कुछ सबसे उन्नत हथियारों का प्रदर्शन किया जा रहा है। आँकड़े इस अभ्यास की गंभीरता को दर्शाते हैं:
- सैनिकों की भागीदारी: 40,000 से अधिक सैनिक, जिनमें मैकेनाइज्ड इन्फेंट्री, आर्टिलरी ब्रिगेड, पैरा स्पेशल फोर्सेज और आर्मी एविएशन कॉर्प्स शामिल हैं।
- वायु संपत्ति: 150 से अधिक विमान, जिनमें राफेल, Su-30 MKI, तेजस लड़ाकू विमान, अपाचे अटैक हेलीकॉप्टर, चिनूक हेवी-लिफ्ट हेलीकॉप्टर और AWACS (एयरबोर्न वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम) शामिल हैं।
- नेटवर्क-केंद्रित संचालन: अभ्यास में एक सुरक्षित ‘स्वदेशी’ संचार प्रणाली का परीक्षण किया जा रहा है, जो तीनों सेनाओं के विभिन्न प्लेटफार्मों को एक ही नेटवर्क पर लाता है, जिसे ‘ऑपरेशनल डेटा लिंक’ (ODL) कहा जाता है।
रक्षा मंत्रालय के एक प्रेस विज्ञप्ति (दिनांक 9 नवंबर, 2025) के अनुसार, इस अभ्यास में “मानव रहित प्रणालियों (Unmanned Systems) और साइबर युद्ध के तत्वों को पहली बार इतने बड़े पैमाने पर एकीकृत किया गया है।”
अभ्यास में शामिल प्रमुख हथियार प्रणालियाँ
| सेवा | प्रमुख हथियार/प्लेटफार्म | भूमिका |
| थल सेना | T-90 ‘भीष्म’ टैंक, K-9 वज्र (आर्टिलरी) | ग्राउंड असॉल्ट, डीप स्ट्राइक |
| थल सेना | पिनाका मल्टी-बैरल रॉकेट लॉन्चर | एरिया सैचुरेशन फायर |
| वायु सेना | राफेल और Su-30MKI जेट | एयर सुपीरियरिटी, प्रिसिजन स्ट्राइक |
| वायु सेना | अपाचे AH-64E हेलीकॉप्टर | एंटी-टैंक, क्लोज एयर सपोर्ट |
| नौसेना | P-8I विमान और सी-गार्डियन ड्रोन | समुद्री और भूमि निगरानी (ISR) |
आधिकारिक प्रतिक्रिया और विशेषज्ञ विश्लेषण
रक्षा मंत्रालय ने इस अभ्यास को “भविष्य की तैयारियों का लिटमस टेस्ट” करार दिया है।
रक्षा मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने सोमवार को कहा, “‘अभ्यास त्रिशूल’ हमारी सेनाओं को एक साथ लड़ने, सोचने और जीतने के लिए प्रशिक्षित कर रहा है। यह रेगिस्तानी इलाके में हमारी युद्धक क्षमताओं को मान्य करेगा और एकीकृत थिएटर कमांड की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।”
विशेषज्ञों की राय: चीन और पाकिस्तान के लिए स्पष्ट संदेश
रक्षा विश्लेषक और सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) एच.एस. पनाग के एक हालिया विश्लेषण के अनुसार, ‘त्रिशूल’ केवल एक नियमित अभ्यास नहीं है, बल्कि यह दो-मोर्चे (चीन और पाकिस्तान) पर युद्ध की वास्तविकताओं के लिए भारत की तैयारी का स्पष्ट संकेत है।
विशेषज्ञों का मानना है कि थार रेगिस्तान को चुनने का एक रणनीतिक कारण है। यह इलाका पश्चिमी सीमा (पाकिस्तान) से सटा हुआ है, और यहाँ का कठोर वातावरण और खुला इलाका बड़े पैमाने पर बख्तरबंद युद्धाभ्यास और वायु शक्ति के एकीकरण के परीक्षण के लिए आदर्श है। यह अभ्यास चीन को भी एक संदेश देता है, जो लद्दाख में इसी तरह के उच्च-तकनीक वाले एकीकृत अभ्यासों पर जोर दे रहा है।
आम लोगों और क्षेत्र पर प्रभाव
इतने बड़े सैन्य अभ्यास का स्थानीय आबादी पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। जैसलमेर और बाड़मेर जिलों के कई गाँवों को अभ्यास की अवधि के लिए खाली करने या रात के समय आवाजाही प्रतिबंधित करने की सलाह दी गई है।
पोखरण के पास एक गाँव के निवासी, 65 वर्षीय राम सिंह ने स्थानीय पत्रकारों को बताया, “हमें दिन-रात धमाकों की आवाज़ें आती हैं। हमें निर्देश दिए गए हैं कि चिह्नित क्षेत्रों से दूर रहें। यह हर कुछ साल में होता है। हम जानते हैं कि यह हमारे देश की सुरक्षा के लिए है और हम इसमें पूरा सहयोग करते हैं।”
इसके अलावा, 40,000 सैनिकों और सैकड़ों वाहनों को रेगिस्तान में तैनात करना एक बहुत बड़ी लॉजिस्टिक चुनौती है। इसमें पानी, ईंधन, गोला-बारूद और भोजन की निर्बाध आपूर्ति श्रृंखला बनाए रखना शामिल है, जो स्वयं युद्ध के समय की रसद क्षमताओं का एक महत्वपूर्ण परीक्षण है।
आगे क्या?
यह अभ्यास 25 नवंबर तक जारी रहेगा। ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल अनिल चौहान 23-24 नवंबर के आसपास अभ्यास के अंतिम चरण की समीक्षा कर सकते हैं, जिसमें एक विशाल ‘इंटीग्रेटेड फायरपावर डिमॉन्स्ट्रेशन’ (एकीकृत मारक क्षमता प्रदर्शन) शामिल होगा।
इस अभ्यास के समापन के बाद, तीनों सेनाओं के वरिष्ठ अधिकारी उन सबक और चुनौतियों का विश्लेषण करेंगे, जिनका सामना सूचना साझा करने और संयुक्त संचालन में करना पड़ा।
निष्कर्ष
‘त्रिशूल’ केवल टैंकों और जेट विमानों की गर्जना नहीं है; यह भारत की सैन्य सिद्धांत (Military Doctrine) में एक गहरे और निर्णायक परिवर्तन का प्रतीक है। यह इस बात का परीक्षण है कि क्या भारत की तीन सेनाएँ वास्तव में भविष्य के जटिल, उच्च-तकनीक, नेटवर्क-केंद्रित युद्धक्षेत्र में “एक बल” (One Force) के रूप में काम कर सकती हैं। इस अभ्यास के परिणाम निस्संदेह भारत के बहुप्रतीक्षित ‘थिएटर कमांड’ के गठन की गति और संरचना को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
