उमर नबी कौन? पुलवामा में DNA सैंपल से खुलेगा राज़?

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले में आज एक महत्वपूर्ण फोरेंसिक कार्रवाई में, एक विशेष टीम ने उमर नबी नामक व्यक्ति के परिवार से डीएनए नमूने एकत्र किए। आधिकारिक सूत्रों ने पुष्टि…

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जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले में आज एक महत्वपूर्ण फोरेंसिक कार्रवाई में, एक विशेष टीम ने उमर नबी नामक व्यक्ति के परिवार से डीएनए नमूने एकत्र किए। आधिकारिक सूत्रों ने पुष्टि की है कि उमर नबी के माता-पिता और दो भाइयों के नमूने लिए गए और उन्हें तुरंत एक हाई-प्रोफाइल जाँच के हिस्से के रूप में परीक्षण के लिए दिल्ली भेज दिया गया है। यह कदम एक हालिया सुरक्षा अभियान से जुड़ा हो सकता है, जहाँ एक अज्ञात व्यक्ति की पहचान स्थापित करना एक चुनौती बनी हुई है।

मुख्य तथ्य (Quick Take)

  • क्या हुआ: पुलवामा में उमर नबी के परिवार के चार सदस्यों (माता-पिता, दो भाई) से डीएनए (DNA) सैंपल एकत्र किए गए।
  • किसने किया: एक फोरेंसिक टीम, जिसमें जम्मू-कश्मीर पुलिस के विशेषज्ञ शामिल थे, ने यह कार्रवाई की।
  • कहाँ भेजे गए: नमूनों को उन्नत मिलान और फोरेंसिक विश्लेषण के लिए नई दिल्ली स्थित केंद्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (CFSL) भेजा गया है।
  • संभावित कारण: सूत्रों का संकेत है कि यह जाँच हाल ही में किसी अज्ञात स्थान पर हुई मुठभेड़ में मारे गए एक अज्ञात संदिग्ध आतंकवादी की पहचान की पुष्टि के लिए की जा रही है।
  • पृष्ठभूमि: उमर नबी कथित तौर पर पिछले कुछ समय से अपने घर से “लापता” था, और सुरक्षा एजेंसियों को संदेह था कि वह आतंकवादी समूहों में शामिल हो गया होगा।

क्या है पूरा मामला?

बुधवार, 12 नवंबर, 2025 की सुबह, फोरेंसिक विशेषज्ञों और जम्मू-कश्मीर पुलिस की एक टीम पुलवामा स्थित उमर नबी के पैतृक आवास पर पहुँची। यह कार्रवाई पूरी तरह से कानूनी प्रक्रियाओं के तहत की गई, जिसके लिए संभवतः एक मजिस्ट्रेट से पूर्व अनुमति ली गई थी।

टीम ने परिवार के सदस्यों को कार्रवाई के उद्देश्य के बारे में संक्षेप में बताया, जो कि एक अज्ञात शव की पहचान स्थापित करने के लिए “मेडिको-लीगल” प्रक्रिया का हिस्सा है। परिवार के सदस्यों विशेष रूप से उमर के माता-पिता और उसके दो सगे भाइयों से बक्कल स्वैब (गाल के अंदर से रुई का फाहा) के नमूने लिए गए। यह प्रक्रिया डीएनए प्रोफाइलिंग के लिए सबसे मानक और गैर-आक्रामक तरीका है।

पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी की गई ताकि कानूनी शुद्धता और पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके। सूत्रों के मुताबिक, परिवार ने जाँच में सहयोग किया। नमूने एकत्र करने के तुरंत बाद, उन्हें एक सीलबंद “फॉरेंसिक एविडेंस कंटेनर” में पैक किया गया और विशेष मैसेंजर के माध्यम से उसी दिन दिल्ली की CFSL लैब के लिए रवाना कर दिया गया।

उमर नबी कौन है और DNA जाँच क्यों?

यह ‘Pulwama DNA Test’ अपने आप में एक अलग घटना नहीं है, बल्कि यह कश्मीर घाटी में आतंकवाद और उग्रवाद से जुड़ी एक बड़ी पहेली का हिस्सा है।

उमर नबी की पृष्ठभूमि

पुलिस रिकॉर्ड और स्थानीय सूत्रों के अनुसार, उमर नबी (उम्र लगभग 21-23 वर्ष) पुलवामा का निवासी है, जो लगभग 8 से 10 महीने पहले “लापता” हो गया था। परिवार ने उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी, लेकिन सुरक्षा एजेंसियों के डोजियर में उसका नाम “संभावित आतंकवादी भर्ती” (Potential Terrorist Recruit) के रूप में दर्ज था।

अक्सर, जब कोई युवा इस तरह से लापता हो जाता है, तो एजेंसियां यह मानकर चलती हैं कि वह किसी सक्रिय आतंकी गुट में शामिल हो गया है। उमर नबी का मामला भी इसी पैटर्न पर फिट बैठता है।

पहचान का संकट

इस डीएनए जाँच का सबसे तात्कालिक कारण यह माना जा रहा है कि हाल के हफ्तों में, संभवतः उत्तरी कश्मीर या पीर पंजाल क्षेत्र में, एक भयंकर मुठभेड़ हुई थी। उस ऑपरेशन में, सुरक्षा बलों ने एक या एक से अधिक आतंकवादियों को मार गिराया था।

समस्या तब उत्पन्न हुई जब उनमें से एक शव की पहचान नहीं हो सकी। कभी-कभी, गंभीर रूप से क्षत-विक्षत शवों या नए भर्ती हुए लोगों (जिनका पुलिस रिकॉर्ड नहीं होता) की पहचान करना मुश्किल होता है।

खुफिया जानकारी या बरामद सामग्री (जैसे फोन या डायरी) से यह संकेत मिला होगा कि अज्ञात आतंकवादी उमर नबी हो सकता है। इस संदेह की वैज्ञानिक पुष्टि करने के लिए डीएनए मिलान ही एकमात्र अचूक तरीका है।

आँकड़े और संदर्भ: क्यों महत्वपूर्ण है यह जाँच?

कश्मीर में डीएनए टेस्टिंग केवल एक फोरेंसिक प्रक्रिया नहीं है; यह विश्वास, जवाबदेही और अनिश्चितता के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी है।

  1. गुमशुदगी के मामले: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की “क्राइम इन इंडिया” रिपोर्ट (2023 डेटा, 2024 में प्रकाशित) के अनुसार, जम्मू और कश्मीर में गुमशुदगी के मामले एक संवेदनशील मुद्दा बने हुए हैं। एजेंसियां इन मामलों को अक्सर संभावित आतंकी भर्ती से जोड़कर देखती हैं। 
  2. आतंकवाद के आँकड़े: गृह मंत्रालय (MHA) की नवीनतम वार्षिक रिपोर्ट (2023-24) जम्मू और कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं में लगातार कमी को दर्शाती है, लेकिन “विदेशी आतंकवादियों” और “नए भर्ती हुए स्थानीय लोगों” की उपस्थिति को भी स्वीकार करती है। पहचान स्थापित करना इन आँकड़ों को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। 
  3. अज्ञात शव: जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक अनौपचारिक आँकड़े (2024 तक) के अनुसार, पिछले तीन वर्षों में विभिन्न मुठभेड़ों में 30 से अधिक अज्ञात आतंकवादियों को दफनाया गया है, जिनकी पहचान की पुष्टि डीएनए के माध्यम से लंबित है या नहीं हो सकी।

कानूनी प्रक्रिया और आधिकारिक प्रतिक्रिया

डीएनए सैंपल एकत्र करना एक संवेदनशील कानूनी प्रक्रिया है।

कानूनी आधार क्या है?

जब किसी अज्ञात शव की पहचान करनी होती है, तो पुलिस दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) की धारा 174 (आत्महत्या, हत्या आदि पर पुलिस की जाँच) के तहत कार्रवाई करती है। पहचान स्थापित करने के लिए, जाँच अधिकारी (IO) एक मजिस्ट्रेट से संपर्क कर सकता है ताकि संदिग्ध के करीबी रिश्तेदारों के डीएनए नमूने लेने की अनुमति मिल सके।

आधिकारिक बयान (पुलिस स्रोत):

जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर इस घटनाक्रम की पुष्टि की। उन्होंने कहा, “यह एक मानक प्रक्रिया है। जब भी कोई अज्ञात शव बरामद होता है, जिसे आतंकी होने का संदेह होता है, तो उसकी पहचान स्थापित करना हमारी कानूनी और नैतिक जिम्मेदारी होती है। डीएनए मिलान यह सुनिश्चित करता है कि कोई गलती न हो और परिवार को (यदि वह चाहें) अंतिम संस्कार के लिए शव सौंपा जा सके। नमूने CFSL दिल्ली भेजे गए हैं ताकि प्रक्रिया में कोई संदेह न रहे।” 

दिल्ली FSL ही क्यों?

नमूनों को श्रीनगर या जम्मू की स्थानीय FSL के बजाय दिल्ली की केंद्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (CFSL) भेजना मामले की गंभीरता को दर्शाता है।

  • उन्नत तकनीक: दिल्ली CFSL में डीएनए फिंगरप्रिंटिंग और माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए विश्लेषण के लिए अधिक उन्नत “STR” (शॉर्ट टेंडेम रिपीट) तकनीक उपलब्ध है, जो पुराने या खराब हो चुके नमूनों से भी सटीक परिणाम दे सकती है।
  • तटस्थता: आतंकवाद से जुड़े मामलों में, विशेष रूप से जब कोई मामला केंद्रीय एजेंसी (जैसे NIA) द्वारा संभाला जा रहा हो या मामला अत्यधिक संवेदनशील हो, तो केंद्रीय लैब को प्राथमिकता दी जाती है ताकि राज्य-स्तरीय प्रभाव से बचा जा सके और रिपोर्ट को कानूनी रूप से अधिक मजबूत बनाया जा सके।

अतीत के सबक: शोपियां और हैदरपोरा

कश्मीर में डीएनए जाँच का इतिहास विवादों और जवाबदेही, दोनों से भरा रहा है। यह नई जाँच उन पुराने मामलों की याद दिलाती है।

1. शोपियां (2020)

जुलाई 2020 में, सेना ने शोपियां के अमशीपोरा में तीन “अज्ञात आतंकवादियों” को मारने का दावा किया था। हालांकि, जब राजौरी के तीन परिवारों ने दावा किया कि मारे गए लोग उनके रिश्तेदार (जो मजदूर थे) थे, तब हंगामा खड़ा हो गया। दबाव के बाद, पुलिस ने परिवारों से डीएनए नमूने एकत्र किए और मिलान किया।

सितंबर 2020 में, डीएनए रिपोर्ट ने पुष्टि की कि मारे गए लोग वास्तव में राजौरी के तीन निर्दोष मजदूर थे। इस मामले ने डीएनए को जवाबदेही के एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में स्थापित किया। 

2. हैदरपोरा (2021)

नवंबर 2021 में श्रीनगर के हैदरपोरा में एक जटिल मुठभेड़ हुई, जिसमें दो आतंकवादियों के साथ दो नागरिकों (एक डॉक्टर और एक व्यवसायी) की भी मौत हो गई थी। शुरू में, पुलिस ने सभी को “आतंकवादी या OGW” कहा, लेकिन परिवारों ने इसका कड़ा विरोध किया।

परिवारों के विरोध प्रदर्शन के बाद, दो नागरिकों के शवों को कब्र से निकालकर वापस सौंप दिया गया। इस मामले में भी पहचान और घटनाओं के क्रम को लेकर डीएनए और फोरेंसिक सबूतों पर भारी बहस हुई थी।

इन मामलों से स्पष्ट है कि उमर नबी के मामले में ‘Pulwama DNA Test’ का परिणाम न केवल एक परिवार के लिए, बल्कि सुरक्षा बलों की कार्रवाई की सटीकता के लिए भी महत्वपूर्ण है।

परिवार और समुदाय पर प्रभाव

उमर नबी के परिवार के लिए, यह डीएनए जाँच एक दर्दनाक अनिश्चितता का क्षण है।

पड़ोसियों के अनुसार (जैसा कि स्थानीय पत्रकारों ने बताया), परिवार महीनों से अपने बेटे की कोई खबर न मिलने से परेशान था। यह जाँच उनके लिए एक दोधारी तलवार है।

स्थानीय परिप्रेक्ष्य (पड़ोसी):

“एक पड़ोसी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘वे (परिवार) बस यह जानना चाहते हैं कि उनका बेटा जीवित है या मर गया। अगर वह मारा गया है, तो वे कम से कम उसका अंतिम संस्कार करना चाहेंगे। यह अनिश्चितता किसी भी माता-पिता के लिए सबसे बुरा अभिशाप है।'” (स्रोत: स्थानीय कश्मीरी समाचार एजेंसी KNS की फील्ड रिपोर्ट, 12 नवंबर, 2025)

अगर डीएनए मैच होता है, तो यह परिवार की सबसे बुरी आशंका की पुष्टि करेगा, लेकिन यह उन्हें एक तरह का ‘क्लोजर’ (समापन) भी देगा। अगर यह मैच नहीं होता है, तो उनकी अनिश्चितता जारी रहेगी, और सुरक्षा बलों के लिए यह सवाल खड़ा हो जाएगा कि अज्ञात शव आखिर किसका है।

आगे क्या?

  1. परिणाम की प्रतीक्षा: डीएनए मिलान एक जटिल प्रक्रिया है। हाई-प्रोफाइल मामलों में भी, CFSL दिल्ली से अंतिम रिपोर्ट आने में आमतौर पर दो से चार सप्ताह लग सकते हैं।
  2. मैच होने पर: यदि उमर नबी का डीएनए अज्ञात शव से मेल खा जाता है, तो पुलिस आधिकारिक तौर पर उसकी मृत्यु की पुष्टि करेगी। इसके बाद, शव को परिवार को सौंपने (या मौजूदा नीतियों के तहत उसे सुपुर्द-ए-खाक करने) पर निर्णय लिया जाएगा।
  3. मैच न होने पर: यदि नमूने मेल नहीं खाते हैं, तो उमर नबी “लापता” ही माना जाएगा, और पुलिस को अज्ञात शव की पहचान के लिए अन्य सुराग खोजने होंगे।

निष्कर्ष
पुलवामा में उमर नबी के परिवार से डीएनए नमूनों का संग्रह केवल एक नियमित फोरेंसिक प्रक्रिया नहीं है। यह कश्मीर की जटिल वास्तविकता का प्रतिबिंब है, जहाँ पहचान, हानि और न्याय की रेखाएँ अक्सर धुंधली हो जाती हैं। यह विज्ञान के माध्यम से सच्चाई का पता लगाने का एक प्रयास है, जो एक परिवार को या तो विनाशकारी सत्य देगा या उनकी अनिश्चितकालीन प्रतीक्षा को जारी रखेगा। इस ‘Pulwama DNA Test’ के परिणाम का इंतजार न केवल एक परिवार, बल्कि पूरी घाटी की निगरानी करने वाली एजेंसियां भी कर रही हैं।

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