
पाकिस्तान के सबसे गुप्त परमाणु कार्यक्रम की जानकारी एक नाई की दुकान के फर्श पर गिरे बालों के नमूनों से मिली थी। 1980 के दशक में भारतीय खुफिया एजेंसी RAW ने इस असाधारण अभियान के जरिए पाकिस्तान के गुप्त परमाणु कार्यक्रम के सबूत इकट्ठे किए थे। लेकिन बाद में भारत के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के एक फोन कॉल की वजह से यह जासूसी नेटवर्क पूरी तरह नष्ट हो गया था।
यह घटना आज भी खुफिया दुनिया की सबसे चर्चित कहानियों में से एक मानी जाती है। RAW के एजेंटों ने कैसे एक साधारण नाई की दुकान का इस्तेमाल करके पाकिस्तान के परमाणु वैज्ञानिकों की गतिविधियों पर नजर रखी थी, यह जानना दिलचस्प है। इस ऑपरेशन की सफलता से भारतीय खुफिया एजेंसी को पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम की महत्वपूर्ण जानकारी मिली थी।
उस समय पाकिस्तान अपने परमाणु कार्यक्रम को पूरी गुप्तता से आगे बढ़ा रहा था। डॉ. ए.क्यू. खान के नेतृत्व में चल रहे इस कार्यक्रम की जानकारी किसी को नहीं थी। लेकिन RAW के एजेंटों ने कहान साइंस की मदद से एक अनोखा तरीका खोजा था। वे जानते थे कि परमाणु रिएक्टर में काम करने वाले वैज्ञानिकों के बालों में रेडियोधर्मी तत्व मौजूद होते हैं।
RAW के एजेंटों ने उन इलाकों की पहचान की जहां पाकिस्तानी परमाणु वैज्ञानिक रहते थे। इसके बाद उन्होंने स्थानीय नाइयों के साथ संपर्क स्थापित किया। कई महीनों की मेहनत के बाद एजेंटों को सफलता मिली। वे उन नाई की दुकानों से बालों के नमूने इकट्ठे करने में कामयाब हुए जहां पाकिस्तानी परमाणु वैज्ञानिक बाल कटवाने आते थे।
लैब में इन बालों की जांच से पता चला कि इनमें रेडियोधर्मी तत्व मौजूद हैं। यह साबित करता था कि इन बालों के मालिक परमाणु रिएक्टर के आसपास काम करते हैं। इस तरह RAW ने न सिर्फ पाकिस्तान के गुप्त परमाणु कार्यक्रम का पता लगाया बल्कि यह भी जाना कि यह कार्यक्रम कितना आगे बढ़ चुका है।
भारतीय खुफिया एजेंसी के लिए यह एक बड़ी सफलता थी। इस जानकारी से भारत सरकार को पता चल गया कि पाकिस्तान परमाणु हथियार बनाने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। RAW के एजेंट लगातार इस नेटवर्क के जरिए पाकिस्तान की परमाणु गतिविधियों की निगरानी कर रहे थे।
लेकिन 1977 में भारत में राजनीतिक बदलाव के बाद स्थिति बदल गई। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार गिरने के बाद मोरारजी देसाई सत्ता में आए। देसाई साहब की राजनीतिक विचारधारा अलग थी और वे पाकिस्तान के साथ बेहतर रिश्ते चाहते थे।
मोरारजी देसाई ने पाकिस्तान के तत्कालीन तानाशाह जनरल जिया उल हक को फोन किया। इस फोन कॉल में देसाई ने जिया को बताया कि भारत को पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम की जानकारी है। उन्होंने यह भी बताया कि भारतीय एजेंट पाकिस्तान में सक्रिय हैं और परमाणु कार्यक्रम पर नजर रख रहे हैं।
यह फोन कॉल भारतीय खुफिया एजेंसी के लिए एक बड़ा झटका साबित हुआ। जनरल जिया उल हक ने तुरंत अपनी खुफिया एजेंसी ISI को सतर्क किया। पाकिस्तानी एजेंसियों ने तुरंत कार्रवाई शुरू की और भारतीय जासूसी नेटवर्क को खत्म करने का अभियान चलाया।
इस घटना के बाद RAW के कई एजेंटों की पहचान हो गई। पाकिस्तानी अधिकारियों ने उन स्थानीय लोगों को भी गिरफ्तार किया जो भारतीय एजेंटों की मदद कर रहे थे। सालों की मेहनत से खड़ा किया गया जासूसी नेटवर्क एक ही दिन में ध्वस्त हो गया।
इस घटना का सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ कि भारत को पाकिस्तान की परमाणु गतिविधियों की नियमित जानकारी मिलना बंद हो गई। पाकिस्तान ने अपनी सुरक्षा व्यवस्था और भी मजबूत कर ली। परमाणु कार्यक्रम में शामिल वैज्ञानिकों की सुरक्षा बढ़ा दी गई।
RAW के वरिष्ठ अधिकारियों ने बाद में इस घटना को भारतीय खुफिया इतिहास की सबसे बड़ी असफलताओं में से एक बताया है। उनके अनुसार अगर यह जासूसी नेटवर्क सक्रिय रहता तो भारत को पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम की बेहतर जानकारी मिलती रहती।
इस घटना से भारतीय खुफिया एजेंसी को एक महत्वपूर्ण सबक मिला। राजनीतिक नेतृत्व और खुफिया एजेंसियों के बीच बेहतर तालमेल की जरूरत महसूस की गई। आगे चलकर इस तरह की घटनाओं से बचने के लिए नई नीतियां बनाई गईं।
पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम की शुरुआत 1970 के दशक में हुई थी। जुल्फिकार अली भुट्टो के नेतृत्व में इस कार्यक्रम को गुप्त रूप से आगे बढ़ाया गया था। 1974 में भारत के पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद पाकिस्तान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को और भी तेज कर दिया था।
डॉ. ए.क्यू. खान यूरोप से वापस आने के बाद पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम का नेतृत्व संभाला था। उन्होंने यूरेनियम संवर्धन की तकनीक विकसित की थी। खान लैबोरेटरी इस कार्यक्रम का मुख्य केंद्र बनी थी।
भारतीय खुफिया एजेंसी को इन सभी गतिविधियों की जानकारी थी। नाई की दुकान से मिले बालों के नमूनों ने इन संदेहों की पुष्टि की थी। लेकिन मोरारजी देसाई के फैसले ने इस महत्वपूर्ण खुफिया ऑपरेशन को समाप्त कर दिया।
आज भी यह घटना दुनिया भर की खुफिया एजेंसियों के लिए एक केस स्टडी है। यह दिखाती है कि कैसे वैज्ञानिक तकनीक का इस्तेमाल करके असंभव लगने वाली खुफिया जानकारी भी हासिल की जा सकती है। साथ ही यह भी साबित करती है कि राजनीतिक फैसले कैसे खुफिया अभियानों को प्रभावित कर सकते हैं।
आज भारत और पाकिस्तान दोनों परमाणु शक्ति संपन्न देश हैं। 1998 में दोनों देशों ने अपने परमाणु परीक्षण किए थे। लेकिन 1980 के दशक की यह घटना दोनों देशों के खुफिया इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। RAW के इस ऑपरेशन ने साबित किया था कि सही रणनीति और वैज्ञानिक तकनीक के साथ सबसे कठिन खुफिया चुनौतियों का भी समाधान निकाला जा सकता है।