7 सितंबर को 100 साल बाद दिखेगा विशेष चंद्र ग्रहण – गर्भवती महिलाओं के लिए जरूरी सावधानियां और मंदिरों का बंद होना

भारत में 7 सितंबर 2025 को एक विशेष चंद्र ग्रहण देखने को मिलेगा जो 100 साल बाद लग रहा है। यह ग्रहण रात 9 बजकर 58 मिनट से शुरू होकर…

महत्वपूर्ण पोस्ट साझा करें

भारत में 7 सितंबर 2025 को एक विशेष चंद्र ग्रहण देखने को मिलेगा जो 100 साल बाद लग रहा है। यह ग्रहण रात 9 बजकर 58 मिनट से शुरू होकर देर रात 1 बजकर 26 मिनट तक चलेगा। ज्योतिष विशेषज्ञों के अनुसार इस ग्रहण का सूतक काल दोपहर 12:57 बजे से आरंभ हो जाएगा। इस दौरान देशभर के प्रमुख मंदिरों के कपाट बंद रहेंगे और कोई धार्मिक कार्य नहीं किया जाएगा। गर्भवती महिलाओं को इस अवधि में विशेष सावधानी बरतने की सलाह दी जा रही है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह चंद्र ग्रहण धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। खगोलविदों का कहना है कि इस प्रकार का चंद्र ग्रहण पिछली बार 1925 में देखा गया था। इसलिए इसे शताब्दी का सबसे दुर्लभ खगोलीय घटना कहा जा रहा है। भारतीय पंचांग के अनुसार यह ग्रहण भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में पड़ रहा है।

सूतक काल की शुरुआत के साथ ही पूरे देश के प्रमुख तीर्थस्थलों में विशेष व्यवस्थाएं की गई हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी के पुजारी बताते हैं कि सूतक काल के दौरान मंदिर के गर्भगृह को पूर्णतः बंद कर दिया जाएगा। इसी तरह तिरुमला बालाजी मंदिर, अयोध्या के राम मंदिर और आंध्र प्रदेश के श्रीसैलम मंदिर भी अपने कपाट बंद रखेंगे। मंदिर प्रशासन ने श्रद्धालुओं से अनुरोध किया है कि वे इस अवधि में मंदिर आने से बचें।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार चंद्र ग्रहण के दौरान भगवान की मूर्तियों को भी विशेष सुरक्षा प्रदान की जाती है। पंडितों का कहना है कि ग्रहण के समय दैवीय शक्तियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसलिए मूर्तियों को कुश घास से ढक दिया जाता है और मंत्रों का जाप करके उन्हें सुरक्षित रखा जाता है। ग्रहण समाप्त होने के बाद मंदिरों की विधिवत सफाई करके पुनः पूजा-अर्चना शुरू की जाएगी।

गर्भवती महिलाओं के लिए यह ग्रहण विशेष चुनौती लेकर आ रहा है। आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ राजेश शर्मा बताते हैं कि ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाओं को घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए। उन्हें तेज धार या नुकीली वस्तुओं का प्रयोग करने से बचना चाहिए। सुई, चाकू, कैंची जैसी चीजों का उपयोग न करें क्योंकि इससे गर्भस्थ शिशु पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना है कि भले ही ग्रहण का कोई वैज्ञानिक प्रभाव गर्भ पर न हो, लेकिन मानसिक तनाव से बचने के लिए परंपरागत सावधानियां बरतना उचित है। गर्भवती महिलाओं को ग्रहण के दौरान भोजन करने से बचना चाहिए। यदि बहुत जरूरी हो तो तुलसी की पत्ती खाने के बाद ही कुछ खाएं। ग्रहण के समय नहाना-धोना भी वर्जित माना गया है।

ज्योतिष शास्त्र में चंद्र ग्रहण को मानसिक और भावनात्मक परिवर्तन का समय माना जाता है। चंद्रमा मन का कारक ग्रह है और इसके ग्रस्त होने पर मनुष्य की भावनाओं में उतार-चढ़ाव आता है। इसलिए ग्रहण के दौरान ध्यान, जप-तप करने की सलाह दी जाती है। लोगों को गुस्सा, चिंता और अवसाद जैसी नकारात्मक भावनाओं से दूर रहना चाहिए।

राष्ट्रीय खगोल संस्थान के वैज्ञानिकों का कहना है कि यह पूर्ण चंद्र ग्रहण होगा। इस दौरान चांद पूर्णतः पृथ्वी की छाया में चला जाएगा। ग्रहण के समय चांद का रंग लाल-भूरा दिखाई देगा। इसे ‘ब्लड मून’ भी कहते हैं। भारत के अधिकांश हिस्सों से यह ग्रहण स्पष्ट रूप से देखा जा सकेगा। मौसम विभाग के अनुसार आसमान साफ रहने की संभावना है।

खगोलविदों ने बताया कि इस ग्रहण की कुल अवधि लगभग 3 घंटे 28 मिनट होगी। पूर्णता की अवधि 1 घंटा 20 मिनट रहेगी। यह ग्रहण मुख्यतः एशिया, यूरोप और अफ्रीका के कुछ हिस्सों में दिखाई देगा। भारत में यह पूर्ण रूप से दिखेगा। ग्रहण देखने के लिए विशेष चश्मों की जरूरत नहीं है क्योंकि चंद्र ग्रहण आंखों के लिए हानिकारक नहीं होता।

धार्मिक परंपरा के अनुसार ग्रहण के बाद स्नान करना आवश्यक माना जाता है। लोग गंगा, यमुना, नर्मदा जैसी पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। जो लोग नदी तक नहीं पहुंच सकते, वे घर में ही स्नान करके पवित्र हो सकते हैं। ग्रहण के बाद घर की सफाई, कपड़े धोना और भोजन बनाना शुभ माना जाता है।

पंडित विनोद शास्त्री का कहना है कि ग्रहण के दौरान दान-पुण्य का विशेष महत्व है। जो लोग इस समय गरीबों की मदद करते हैं, उन्हें पुण्य की प्राप्ति होती है। विशेषकर अन्नदान और वस्त्रदान को बहुत शुभ माना गया है। कई धर्मार्थ संस्थाएं ग्रहण के बाद भोजन वितरण का कार्यक्रम आयोजित करती हैं।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो चंद्र ग्रहण एक प्राकृतिक खगोलीय घटना है। जब पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती है तो पृथ्वी की छाया चांद पर पड़ती है। इससे चांद का प्रकाश धुंधला हो जाता है। यह घटना पूर्णतः सुरक्षित है और इसका कोई हानिकारक प्रभाव नहीं होता। फिर भी भारतीय संस्कृति में इसे धार्मिक महत्व दिया गया है।

आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में ग्रहण के समय शरीर की ऊर्जा में परिवर्तन होने की बात कही गई है। इसलिए इस दौरान हल्का भोजन करने, अधिक पानी पीने और आराम करने की सलाह दी जाती है। बुजुर्गों और बच्चों को विशेष देखभाल की जरूरत होती है। हृदय रोगी और मधुमेह के मरीजों को अपनी दवाइयों का समय पर सेवन करते रहना चाहिए।

शिक्षा जगत में भी ग्रहण का प्रभाव देखने को मिलता है। कई स्कूल और कॉलेज इस दिन छुट्टी घोषित करते हैं। शिक्षक छात्रों को ग्रहण के बारे में वैज्ञानिक जानकारी देते हैं। इससे बच्चों में खगोल विज्ञान की समझ बढ़ती है। कई शैक्षणिक संस्थान ग्रहण देखने के लिए विशेष व्यवस्था भी करते हैं।

व्यापारिक गतिविधियों पर भी ग्रहण का असर पड़ता है। कई दुकानदार ग्रहण के दौरान अपनी दुकानें बंद रखते हैं। सूतक काल में नई खरीदारी करना अशुभ माना जाता है। शेयर बाजार में भी इसका प्रभाव देखा जाता है। निवेशक सावधानी बरतते हैं और बड़े निवेश से बचते हैं।

समाज कल्याण की दृष्टि से देखें तो ग्रहण का समय एकजुटता का समय होता है। लोग अपने मतभेद भूलकर एक साथ आते हैं। पड़ोसियों की मदद करते हैं और सामुदायिक भावना को मजबूत करते हैं। विशेषकर गर्भवती महिलाओं और बुजुर्गों की देखभाल में सभी लोग सहयोग करते हैं।

इस प्रकार 7 सितंबर का चंद्र ग्रहण न केवल एक खगोलीय घटना है बल्कि भारतीय समाज के लिए धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व का दिन है। 100 साल बाद आने वाला यह विशेष ग्रहण लोगों की स्मृतियों में हमेशा के लिए बस जाएगा।

About Author

Leave a Comment