चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग बीजिंग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मेजबानी करने जा रहे हैं। यह महत्वपूर्ण राजनयिक बैठक वैश्विक महाशक्तियों के बीच एकजुटता प्रदर्शित करने का अवसर है। अमेरिकी व्यापारिक दबाव के बढ़ते माहौल में यह शिखर सम्मेलन पश्चिमी आर्थिक नीतियों के खिलाफ ग्लोबल साउथ की एकता को दर्शाने वाला कदम माना जा रहा है।

इस उच्च स्तरीय बैठक का आयोजन ऐसे समय हो रहा है जब अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में तनाव चरम पर पहुंच गया है। रिपोर्ट्स के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी ने हाल के हफ्तों में डोनाल्ड ट्रंप के कई फोन कॉल्स को अस्वीकार किया है। यह घटनाक्रम भारत की स्वतंत्र विदेश नीति और बदलते वैश्विक समीकरणों को स्पष्ट रूप से दिखाता है। तीनों देशों के नेताओं की इस बैठक से नई भू-राजनीतिक दिशा तय होने की संभावना है।

बीजिंग में होने वाले इस त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन की तैयारियां जोरों पर चल रही हैं। चीनी अधिकारियों का कहना है कि यह बैठक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को मजबूत बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगी। भारत, चीन और रूस के बीच आर्थिक सहयोग बढ़ाने पर विशेष जोर दिया जाएगा। ऊर्जा, रक्षा, प्रौद्योगिकी और व्यापार के क्षेत्र में नई साझेदारियां विकसित करने की योजना है।

अमेरिकी प्रशासन द्वारा लगाए जा रहे व्यापारिक दबाव ने विश्व अर्थव्यवस्था को गंभीर चुनौती के सामने खड़ा कर दिया है। विशेषकर चीन और रूस पर लगे प्रतिबंधों का प्रभाव अन्य देशों पर भी पड़ रहा है। इन परिस्थितियों में तीनों बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का एक मंच पर आना महत्वपूर्ण संदेश देता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह बैठक पश्चिमी देशों के एकाधिकार को चुनौती देने का स्पष्ट संकेत है।

ग्लोबल साउथ की एकता का यह प्रदर्शन कई मायनों में ऐतिहासिक है। भारत, चीन और रूस मिलकर विश्व की आधी से अधिक आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन देशों की संयुक्त जीडीपी वैश्विक अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा है। पारंपरिक पश्चिमी आर्थिक संस्थानों के विकल्प के रूप में नई व्यवस्था का निर्माण इस शिखर सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य माना जा रहा है। ब्रिक्स जैसे मंचों को और मजबूत बनाने पर भी चर्चा होगी।

राजनयिक सूत्रों के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी के ट्रंप के फोन कॉल्स को नजरअंदाज करने का मामला अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में चर्चा का विषय बना हुआ है। यह घटना भारत की बदलती विदेश नीति को दर्शाती है, जहां किसी एक महाशक्ति पर निर्भरता को कम करने की रणनीति अपनाई जा रही है। भारत अब अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखते हुए सभी देशों के साथ संतुलित रिश्ते बनाने पर जोर दे रहा है।

इस त्रिपक्षीय वार्ता में रक्षा सहयोग भी एक प्रमुख एजेंडा होगा। तीनों देश अपनी सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने और संयुक्त रक्षा अभ्यास आयोजित करने पर सहमति बना सकते हैं। परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष तकनीक और साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में भी नई पहल की जा सकती है। चीन का बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव और भारत की कनेक्टिविटी परियोजनाओं के बीच तालमेल बिठाने की संभावनाएं तलाशी जाएंगी।

आर्थिक मोर्चे पर तीनों देश स्थानीय मुद्राओं में व्यापार बढ़ाने पर जोर दे सकते हैं। डॉलर पर निर्भरता कम करने के लिए वैकल्पिक भुगतान प्रणाली विकसित करने पर चर्चा होगी। कृत्रिम बुद्धिमत्ता, 5जी तकनीक और नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने की योजना है। इन सभी क्षेत्रों में तकनीकी साझेदारी से तीनों देशों को फायदा होगा।

वैश्विक खाद्य सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर भी इस शिखर सम्मेलन में गहरी चर्चा होने की उम्मीद है। कोविड-19 के बाद की वैश्विक स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाए जा सकते हैं। फार्मास्युटिकल क्षेत्र में सहयोग बढ़ाकर दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने पर जोर दिया जाएगा।

इस महत्वपूर्ण बैठक का प्रभाव पश्चिमी देशों पर भी पड़ने की संभावना है। नाटो और यूरोपीय संघ इस घटनाक्रम पर बारीकी से नजर रखे हुए हैं। अमेरिकी रणनीतिकार इस त्रिपक्षीय गठबंधन को अपनी वैश्विक प्रभुता के लिए चुनौती के रूप में देख रहे हैं। इस स्थिति में भविष्य की भू-राजनीतिक रणनीतियों में बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं।

संयुक्त राष्ट्र सुधार और बहुपक्षवाद को मजबूत बनाने पर भी इस शिखर सम्मेलन में महत्वपूर्ण निर्णय लिए जा सकते हैं। तीनों देश विकासशील राष्ट्रों की आवाज को वैश्विक मंचों पर मजबूत बनाने की दिशा में काम करेंगे। दक्षिण-दक्षिण सहयोग को बढ़ावा देकर पारंपरिक उत्तर-दक्षिण विभाजन को चुनौती देने की रणनीति अपनाई जाएगी।

निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि बीजिंग में होने वाला यह मोदी-पुतिन शिखर सम्मेलन अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में एक नया अध्याय खोलने वाला है। वैश्विक शक्ति संतुलन में आने वाले बदलाव का यह स्पष्ट संकेत है कि एकध्रुवीय विश्व का युग समाप्त हो रहा है और बहुध्रुवीय व्यवस्था का उदय हो रहा है।

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