प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार को राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से अलग-अलग मुलाकात की1। दोनों नेताओं की यह मुलाकात कुछ घंटों के अंतराल पर हुई, जिसने राजनीतिक गलियारों में कैबिनेट फेरबदल और उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर अटकलों को तेज कर दिया है। राष्ट्रपति भवन की ओर से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर जारी बयान के अनुसार, पहले प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति से मुलाकात की, उसके बाद गृहमंत्री शाह ने भी राष्ट्रपति से भेंट की।
राष्ट्रपति भवन ने अपने आधिकारिक एक्स अकाउंट पर लिखा, “प्रधानमंत्री श्री @narendramodi ने राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात की।” इसके कुछ घंटे बाद एक और पोस्ट में कहा गया, “केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात की।” हालांकि इन मुलाकातों के विषय में कोई आधिकारिक जानकारी सामने नहीं आई है, लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञ इसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम मान रहे हैं।
संसदीय गतिरोध के बीच हुई ये मुलाकातें और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती हैं। वर्तमान में संसद में बिहार विधानसभा चुनाव से पहले विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) प्रक्रिया पर विपक्ष की बहस की मांग को लेकर गतिरोध जारी है। मानसून सत्र 21 जुलाई से शुरू हुआ था, लेकिन ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा को छोड़कर संसद में कोई खास काम नहीं हो पाया है। विपक्ष लगातार बिहार में चुनावी नामावली के संशोधन पर बहस की मांग कर रहा है, जिससे संसदीय कार्यवाही बाधित हो रही है।
उपराष्ट्रपति पद से जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे के बाद यह मुलाकात और भी संवेदनशील हो गई है। धनखड़ ने 21 जुलाई को स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए उपराष्ट्रपति पद से अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को सौंप दिया था। चुनाव आयोग ने उपराष्ट्रपति चुनाव की तारीख 9 सितंबर निर्धारित की है, और नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि 21 अगस्त रखी गई है। उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए चुनावी कॉलेज में राज्यसभा के 233 निर्वाचित और 12 मनोनीत सदस्यों सहित कुल 788 संसद सदस्य शामिल होते हैं, जिसमें लोकसभा के 543 निर्वाचित सांसद भी शामिल हैं।
अंतर्राष्ट्रीय दबाव भी इन मुलाकातों की पृष्ठभूमि में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में भारतीय निर्यात पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा की है। ट्रंप ने भारत को रूसी तेल खरीदने के लिए अतिरिक्त दंड की भी चेतावनी दी है। इन परिस्थितियों में प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की राष्ट्रपति से मुलाकात का राजनीतिक महत्व और भी बढ़ जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि ये मुलाकातें वैश्विक आर्थिक चुनौतियों और देश की आंतरिक राजनीतिक स्थिति पर चर्चा के लिए हो सकती हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने शनिवार को वाराणसी में एक रैली को संबोधित करते हुए वैश्विक अस्थिरता के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती पर जोर दिया था। उन्होंने कहा था कि “वैश्विक अस्थिरता का माहौल है। सभी देश अपने व्यक्तिगत हितों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है, और यही कारण है कि भारत को अपने आर्थिक हितों के मामले में सतर्क रहना होगा।” इस दौरान उन्होंने स्वदेशी उत्पादों को अपनाने पर भी जोर दिया था।
वाराणसी यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री ने पीएम किसान सम्मान निधि की 20वीं किस्त जारी की थी, जिसके तहत 9.7 करोड़ किसानों के बैंक खाते में 20,500 करोड़ रुपये से अधिक की राशि हस्तांतरित की गई। इस योजना के तहत अब तक कुल 3.90 लाख करोड़ रुपये का वितरण हो चुका है। इसके अलावा उन्होंने वाराणसी में लगभग 2,200 करोड़ रुपये की विभिन्न विकास परियोजनाओं का शिलान्यास और उद्घाटन भी किया था।
राजनीतिक जानकारों के अनुसार, मानसून सत्र के समाप्त होने के बाद एक बड़ा कैबिनेट फेरबदल हो सकता है। सूत्रों के मुताबिक वित्त, विदेश, सूचना और प्रसारण, तथा पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस जैसे प्रमुख मंत्रालयों में नई नियुक्तियां हो सकती हैं। बिहार विधानसभा चुनाव को देखते हुए सरकार कुछ मंत्रियों को हटाकर नए चेहरों को शामिल कर सकती है। इससे महत्वपूर्ण वोट बैंक को खुश करने की रणनीति भी दिख रही है।
मणिपुर में राष्ट्रपति शासन के विस्तार का मुद्दा भी इन मुलाकातों की पृष्ठभूमि में महत्वपूर्ण है। लोकसभा ने पिछले सप्ताह मणिपुर में राष्ट्रपति शासन को छह महीने और बढ़ाने की मंजूरी दे दी थी, जबकि राज्यसभा में अभी भी इस प्रस्ताव पर चर्चा होनी है। मणिपुर में 13 फरवरी को राष्ट्रपति शासन लगाया गया था, और अब इसे 13 अगस्त के बाद भी जारी रखने की आवश्यकता है।
विपक्षी दलों का रुख भी इस संदर्भ में दिलचस्प है। जो विपक्ष कभी धनखड़ की आलोचना करता था, वह अब उनके अचानक इस्तीफे पर एकजुट होकर उनका बचाव कर रहा है। इससे पता चलता है कि उपराष्ट्रपति पद के इर्द-गिर्द जटिल राजनीतिक समीकरण बन रहे हैं। सरकार ने धनखड़ को जल्दी ही किनारे कर दिया, जिससे वे अकेले इस राजनीतिक तूफान का सामना करने को मजबूर हो गए।
प्रधानमंत्री की यह मुलाकात उनकी हाल की यूनाइटेड किंगडम और मालदीव की यात्रा के बाद राष्ट्रपति से पहली मुलाकात थी4। विदेश यात्रा के बाद प्रधानमंत्री का राष्ट्रपति से मिलना एक सामान्य प्रक्रिया है, लेकिन गृहमंत्री की तुरंत बाद मुलाकात ने इसे विशेष महत्व दिया है। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा है कि क्या ये मुलाकातें केवल शिष्टाचार की हैं या इनके पीछे कोई बड़ी राजनीतिक रणनीति है।
संसदीय कार्यवाही में सुधार की दिशा में भी ये मुलाकातें महत्वपूर्ण हो सकती हैं। विपक्ष और सत्तारूढ़ दल के बीच बिहार के मुद्दे पर जारी तनाव को देखते हुए, राष्ट्रपति की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है। हालांकि राष्ट्रपति संसदीय कार्यवाही में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप नहीं करते, लेकिन वे संवैधानिक सलाहकार की भूमिका निभा सकते हैं।
आर्थिक मोर्चे पर भारत को जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, उनके संदर्भ में भी ये मुलाकातें महत्वपूर्ण हैं। अमेरिकी टैरिफ से भारतीय निर्यातकों को गंभीर नुकसान हो सकता है, और सरकार को इसके लिए वैकल्पिक रणनीति बनानी होगी। प्रधानमंत्री ने पहले ही स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने पर जोर दिया है, और यह नीति आने वाले समय में और भी मजबूत हो सकती है।
उपराष्ट्रपति चुनाव की तैयारियों के लिए भी ये मुलाकातें अहम हो सकती हैं। चुनावी प्रक्रिया में राष्ट्रपति की भूमिका केंद्रीय होती है, और उम्मीदवारों के चयन पर चर्चा इन मुलाकातों का विषय हो सकता है। भाजपा और उसके सहयोगी दल अपने प्रत्याशी के लिए रणनीति बना रहे होंगे, जिसमें राष्ट्रपति की सलाह महत्वपूर्ण हो सकती है।
इन तमाम घटनाक्रमों के बीच एक बात स्पष्ट है कि भारतीय राजनीति में आने वाले समय में कई महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिल सकते हैं। कैबिनेट फेरबदल से लेकर उपराष्ट्रपति चुनाव तक, हर मोर्चे पर सरकार की रणनीति स्पष्ट होने में अभी समय लगेगा, लेकिन राष्ट्रपति भवन में हुई ये मुलाकातें निश्चित रूप से इन सभी निर्णयों की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी।