फर्जी दस्तावेज, रोहिंग्या और ममता: बंगाल में सियासी तूफान

पश्चिम बंगाल की राजनीति एक बार फिर रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों के मुद्दे पर गरमा गई है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेताओं ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी…

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पश्चिम बंगाल की राजनीति एक बार फिर रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों के मुद्दे पर गरमा गई है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेताओं ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी सरकार पर “वोट बैंक की राजनीति” के लिए रोहिंग्याओं को फर्जी दस्तावेजों के जरिए बसाने में मदद करने का सीधा आरोप लगाया है। यह (Mamata Banerjee Rohingya document allegations) का मामला राष्ट्रीय सुरक्षा और राज्य की जनसांख्यिकी से जुड़ा एक संवेदनशील और बहुस्तरीय विवाद बन गया है, जिसकी जड़ें राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप से लेकर जमीन पर सक्रिय आपराधिक सिंडिकेट तक फैली हुई हैं।

यह पूरा विवाद तब और गहरा गया जब हाल ही में राज्य के विभिन्न हिस्सों से फर्जी आधार कार्ड, वोटर आईडी और पासपोर्ट बनाने वाले कई रैकेटों का भंडाफोड़ हुआ। विपक्ष का दावा है कि ये रैकेट सरकारी संरक्षण में फल-फूल रहे हैं, जबकि तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने इन सभी आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए इसे “अल्पसंख्यकों को बदनाम करने और एनआरसी (NRC) को पिछले दरवाजे से लागू करने” की भाजपा की साजिश करार दिया है।

📰 मुख्य तथ्य: एक नजर में

  • मुख्य आरोप: पश्चिम बंगाल में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने टीएमसी सरकार पर रोहिंग्याओं और बांग्लादेशी घुसपैठियों को फर्जी दस्तावेज (आधार, वोटर आईडी) मुहैया कराकर उन्हें बसाने का आरोप लगाया है।
  • भाजपा का दावा: सुवेंदु अधिकारी ने 25 अक्टूबर, 2025 को दावा किया कि टीएमसी “घुसपैठियों को बसाने में मदद कर रही है” (स्रोत: बिजनेस स्टैंडर्ड)। उन्होंने 3 अगस्त, 2025 को यहां तक कहा कि बंगाल में “लगभग एक करोड़ रोहिंग्या, बांग्लादेशी और फर्जी मतदाता” हैं (स्रोत: द हिंदू)। 
  • टीएमसी का खंडन: मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इन दावों को खारिज किया है। उन्होंने 26 जून, 2025 को चुनाव आयोग की मतदाता सूची संशोधन प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए इसे “पिछले दरवाजे से एनआरसी” लागू करने का प्रयास बताया था (स्रोत: टाइम्स नाउ)।
  • जमीनी कार्रवाई: दिसंबर 2024 से जनवरी 2025 के बीच पश्चिम बंगाल और कोलकाता पुलिस ने फर्जी दस्तावेज बनाने वाले कई रैकेटों का भंडाफोड़ किया है।
  • रैकेट का पर्दाफाश (डेटा 1): 14 जनवरी, 2025 को कोलकाता में एक रैकेट का भंडाफोड़ हुआ, जो कथित तौर पर ₹15,000 में फर्जी आधार कार्ड और ₹10,000 में वोटर आईडी बेच रहा था (स्रोत: द न्यू इंडियन एक्सप्रेस)। 
  • रैकेट का पर्दाफाश (डेटा 2): 19 दिसंबर, 2024 को कोलकाता पुलिस ने 5 लोगों को गिरफ्तार किया, जो ₹2 से ₹5 लाख में फर्जी भारतीय पासपोर्ट बनाते थे, मुख्य रूप से बांग्लादेशी नागरिकों के लिए। कम से कम 73 फर्जी पासपोर्ट जारी किए जाने का अनुमान है (स्रोत: बिजनेस स्टैंडर्ड)। 

क्या है पूरा राजनीतिक विवाद?

यह विवाद कोई नया नहीं है, लेकिन हाल के महीनों में इसमें तेजी आई है। इसकी शुरुआत मुख्य रूप से भाजपा द्वारा पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची संशोधन प्रक्रिया (Special Intensive Revision – SIR) पर सवाल उठाने से हुई।

भाजपा का रुख: “वोट बैंक” और राष्ट्रीय सुरक्षा

पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी इस मुद्दे पर सबसे मुखर रहे हैं।

  • 25 अक्टूबर, 2025: दक्षिण दिनाजपुर में एक रैली में, अधिकारी ने आरोप लगाया कि टीएमसी “रोहिंग्या घुसपैठियों को फर्जी दस्तावेज मुहैया कराकर राज्य में बसने में मदद कर रही है” ताकि राज्य की जनसांख्यिकी को बदला जा सके। उन्होंने दावा किया कि अगर टीएमसी को नहीं हटाया गया तो “हिंदू अल्पसंख्यक” हो जाएंगे (स्रोत: बिजनेस स्टैंडर्ड, 25 अक्टूबर 2025)। 
  • 3 अगस्त, 2025: अधिकारी ने दावा किया कि पश्चिम बंगाल की मतदाता सूची में “लगभग एक करोड़ रोहिंग्या, बांग्लादेशी, मृतक और फर्जी मतदाता” हैं और उन्होंने चुनाव आयोग से कार्रवाई की मांग की (स्रोत: द हिंदू, 3 अगस्त 2025)। 
  • 16 जुलाई, 2025: उन्होंने मांग की कि “लाखों रोहिंग्या मुसलमानों के नाम” मतदाता सूची से हटाए जाएं (स्रोत: जनसत्ता, 16 जुलाई 2025)।भाजपा का आरोप केवल राज्य स्तर तक सीमित नहीं है।
  • 28 मार्च, 2025: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में कहा कि बांग्लादेशी घुसपैठिए और रोहिंग्या अब असम के बजाय पश्चिम बंगाल के रास्ते प्रवेश कर रहे हैं। उन्होंने सीधे तौर पर टीएमसी सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा, “उन्हें आधार कार्ड, नागरिकता कौन देता है? पकड़े गए सभी बांग्लादेशियों के पास 24 परगना जिले के आधार कार्ड हैं।” (स्रोत: डीडी न्यूज, 28 मार्च 2025)।

भाजपा का तर्क स्पष्ट है: टीएमसी जानबूझकर इन अवैध प्रवासियों को नागरिकता दस्तावेज दिलवा रही है ताकि उन्हें अपने प्रतिबद्ध “वोट बैंक” में बदला जा सके, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा है।

टीएमसी का पलटवार: “NRC की साजिश”

तृणमूल कांग्रेस इन आरोपों को राजनीतिक रूप से प्रेरित और तथ्यात्मक रूप से गलत बताती है।

  • ममता बनर्जी का एनआरसी आरोप: मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने खुद इस मुद्दे पर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को घेरा है। 26 जून, 2025 को, उन्होंने मतदाता सूची संशोधन प्रक्रिया की आलोचना करते हुए कहा कि माता-पिता के नागरिकता दस्तावेजों की मांग करना “पिछले दरवाजे से एनआरसी लागू करने” का एक गुप्त प्रयास है। उन्होंने सवाल किया, “लोग अपनी मां या पिता का प्रमाण पत्र कहां से लाएंगे?” (स्रोत: टाइम्स नाउ, 26 जून 2025)।
  • भाजपा की मानसिकता पर सवाल: टीएमसी ने भाजपा पर अल्पसंख्यक विरोधी होने का आरोप लगाया है। 31 जुलाई, 2025 को टीएमसी ने एक वीडियो साझा किया, जिसमें कथित तौर पर सुवेंदु अधिकारी एक टीएमसी मुस्लिम कार्यकर्ता को “पाकिस्तानी” और “रोहिंग्या” कहते हुए दिख रहे थे। टीएमसी ने इसे भाजपा की “विभाजनकारी मानसिकता” का सबूत बताया (स्रोत: यूट्यूब/विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स, 31 जुलाई 2025)।

टीएमसी का तर्क यह है कि भाजपा “घुसपैठियों” की आड़ में पश्चिम बंगाल के वास्तविक और गरीब नागरिकों, विशेषकर अल्पसंख्यकों को निशाना बना रही है, ताकि उन्हें मताधिकार से वंचित किया जा सके।

फर्जी दस्तावेजों के रैकेट: जमीनी हकीकत और आंकड़े

राजनीतिक बयानबाजी से इतर, पश्चिम बंगाल में फर्जी पहचान दस्तावेजों के संगठित रैकेटों का अस्तित्व एक कड़वी सच्चाई है। हाल की पुलिस कार्रवाइयां इस नेटवर्क की गहराई को दर्शाती हैं।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ये गिरफ्तारियां राज्य पुलिस द्वारा ही की गई हैं, जिसे टीएमसी अपनी सक्रियता के सबूत के तौर पर पेश करती है, जबकि भाजपा इसे समस्या की गंभीरता और “सरकारी संरक्षण” के आरोप के रूप में।

फर्जी पासपोर्ट रैकेट (दिसंबर 2024)

कोलकाता पुलिस ने 19 दिसंबर, 2024 को एक बड़े रैकेट का भंडाफोड़ किया जो मुख्य रूप से बांग्लादेशी नागरिकों को निशाना बनाता था।

  • गतिविधि: ₹2 लाख से ₹5 लाख प्रति व्यक्ति लेकर फर्जी भारतीय पासपोर्ट जारी करना। 
  • गिरफ्तारियां: 5 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें नॉर्थ 24 परगना के पिता-पुत्र की जोड़ी (मास्टरमाइंड) और दो संविदा डाक कर्मचारी शामिल थे।
  • पैमाना: अधिकारियों का अनुमान है कि इस गिरोह ने कम से कम 73 फर्जी भारतीय पासपोर्ट जारी किए थे। 
  • (स्रोत: बिजनेस स्टैंडर्ड, 19 दिसंबर 2024)

    फर्जी आईडी रैकेट (जनवरी 2025)

14 जनवरी, 2025 को कोलकाता से सटे इलाकों में एक और गिरोह का पर्दाफाश हुआ, जो स्थानीय स्तर पर फर्जी पहचान पत्र मुहैया कराता था।

  • कीमतें (कथित):
  • फर्जी आधार कार्ड: ₹15,000
  • फर्जी वोटर आईडी: ₹10,000
  • फर्जी जन्म प्रमाण पत्र: ₹12,000
  • गिरफ्तारियां: इस नेटवर्क से जुड़े 9 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिसमें एक स्थानीय अदालत का लॉ क्लर्क और कोलकाता पुलिस का एक सेवानिवृत्त सब-इंस्पेक्टर भी शामिल था।
  • (स्रोत: द न्यू इंडियन एक्सप्रेस, 14 जनवरी 2025) 

सीमा पर घुसपैठ (डेटा 2024)

ये दस्तावेज उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण हैं जो अवैध रूप से सीमा पार करते हैं।

  • 13 जनवरी, 2025 को नॉर्थ 24 परगना में दो बांग्लादेशी नागरिकों को फर्जी भारतीय दस्तावेजों (वोटर आईडी, आधार, पैन) के साथ रहने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। 
  • उसी रिपोर्ट में सीमा सुरक्षा बल (BSF) के सूत्रों के हवाले से कहा गया कि 2024 में दक्षिण बंगाल सीमांत क्षेत्र में 2,400 से अधिक घुसपैठियों को पकड़ा गया था। 
  • (स्रोत: इंडिया टुडे, 13 जनवरी 2025)

विशेषज्ञों का विश्लेषण: तीन अलग-अलग पहलू

इस जटिल मुद्दे को समझने के लिए, इसे तीन अलग-अलग दृष्टिकोणों से देखना होगा:

  1. राजनीतिक पहलू (ध्रुवीकरण बनाम वोट बैंक): यह मुद्दा 2026 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के लिए एक प्रमुख नैरेटिव सेट करता है। भाजपा इसे “हिंदू पहचान” और “राष्ट्रीय सुरक्षा” के इर्द-गिर्द केंद्रित कर रही है, जिसका लक्ष्य टीएमसी के “मुस्लिम तुष्टिकरण” के आरोप को मजबूत करना है। वहीं, टीएमसी इसे “बंगाली अस्मिता” और “अल्पसंख्यकों की सुरक्षा” के मुद्दे के तौर पर पेश कर रही है, और भाजपा को “बाहरी” और “विभाजनकारी” शक्ति के रूप में चित्रित कर रही है।
  2. आपराधिक पहलू (लाभ का धंधा): राजनीतिक आरोपों से परे, फर्जी दस्तावेज बनाना एक बेहद आकर्षक आपराधिक उद्यम है। जैसा कि आंकड़ों से पता चलता है, इन रैकेटों में स्थानीय क्लर्क, डाक कर्मचारी और यहां तक कि सेवानिवृत्त पुलिसकर्मी भी शामिल हैं। उनके लिए, यह विचारधारा का नहीं, बल्कि पैसे का मामला है।
  3. सुरक्षा पहलू (छिद्रपूर्ण सीमा): भारत-बांग्लादेश सीमा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा (विशेषकर पश्चिम बंगाल में) अभी भी बिना बाड़ के है या नदी क्षेत्र है, जिससे घुसपैठ अपेक्षाकृत आसान हो जाती है। जब तक सीमा पूरी तरह से सुरक्षित नहीं होती, तब तक प्रवासियों का आना और उनके लिए फर्जी दस्तावेजों की मांग बनी रहेगी। गृह मंत्री अमित शाह ने खुद 28 मार्च, 2025 को लोकसभा में कहा था कि पश्चिम बंगाल सरकार भूमि अधिग्रहण में सहयोग नहीं कर रही है, जिससे 450 किलोमीटर की बाड़बंदी का काम लंबित है (स्रोत: डीडी न्यूज)।

निष्कर्ष: आरोपों के बीच अनसुलझे सवाल

“क्या ममता बनर्जी फर्जी दस्तावेजों के जरिए रोहिंग्याओं की मदद कर रही हैं?” – यह सवाल एक सीधा “हां” या “नहीं” का जवाब नहीं है, बल्कि यह एक गहरे राजनीतिक, आपराधिक और मानवीय संकट का प्रतिबिंब है।

  • तथ्य यह है कि पश्चिम बंगाल में फर्जी दस्तावेज बनाने वाले बड़े और संगठित रैकेट सक्रिय हैं, जिनमें बांग्लादेशी और संभवतः रोहिंग्या ग्राहक भी शामिल हैं।
  • तथ्य यह भी है कि इन रैकेटों का भंडाफोड़ राज्य की अपनी पुलिस एजेंसियां ​​ही कर रही हैं, हालांकि गिरफ्तारियों में कुछ स्थानीय अधिकारियों की मिलीभगत भी सामने आई है।
  • आरोप यह है (मुख्य रूप से भाजपा द्वारा) कि यह सब मुख्यमंत्री की “मूक सहमति” या “सक्रिय संरक्षण” के तहत हो रहा है।
  • खंडन यह है (टीएमसी द्वारा) कि यह भाजपा द्वारा अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने और एनआरसी के अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए फैलाया गया “फर्जी प्रचार” है।

यह स्पष्ट है कि यह मुद्दा केवल कानून और व्यवस्था का नहीं है; यह 2026 के चुनावों की बिसात पर खेला जा रहा एक महत्वपूर्ण राजनीतिक दांव है। जब तक फर्जी दस्तावेजों के नेटवर्क को पूरी तरह से खत्म नहीं किया जाता और सीमा को सुरक्षित नहीं किया जाता, तब तक यह आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी रहेगा, जिसके बीच आम नागरिक

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