तृणमूल कांग्रेस कल से कोलकाता में चुनाव आयोग के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू करने जा रही है। इसी बीच पश्चिम बंगाल के बूथ लेवल ऑफिसर्स ने केंद्रीय बलों से सुरक्षा की मांग की है। 4 नवंबर से 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मतदाता सूची का विशेष गहन संशोधन शुरू हो रहा है। बंगाल के अधिकारियों का कहना है कि घर-घर जाकर सत्यापन के दौरान उन्हें धमकियों और राजनीतिक दबाव का सामना करना पड़ रहा है।
केवल पश्चिम बंगाल के बूथ लेवल ऑफिसर्स ने इस तरह की सुरक्षा की मांग की है। यह स्थिति राज्य में मौजूदा तनावपूर्ण माहौल को दर्शाती है। मतदाता सत्यापन प्रक्रिया को लेकर अधिकारी चिंतित हैं और केंद्रीय बलों की सुरक्षा में ही अपना काम करना चाहते हैं। इस स्थिति से पता चलता है कि राज्य में चुनावी प्रक्रिया को लेकर कितनी जटिलताएं हैं।
सीमावर्ती जिलों से आई रिपोर्ट्स के अनुसार कई बांग्लादेशी अवैध प्रवासी बंगाल छोड़कर जा रहे हैं। उनका डर है कि मतदाता सत्यापन अभ्यान के दौरान उनकी पहचान हो जाएगी। मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन की घोषणा के बाद से भारत-बांग्लादेश सीमा पर हलचल तेज हो गई है। अधिकारियों ने इस असामान्य गतिविधि को लेकर चेतावनी जारी की है।
इस साल की शुरुआत में दक्षिण 24 परगना जिले के पाठानखाली ग्राम पंचायत से 3500 से अधिक फर्जी जन्म प्रमाण पत्र मिले थे। इन दस्तावेजों का इस्तेमाल आधार कार्ड, पैन कार्ड और यहां तक कि पासपोर्ट बनाने के लिए किया गया था। यह एक बड़े पहचान धोखाधड़ी नेटवर्क का पर्दाफाश था। इस घटना से यह साबित हो गया था कि राज्य में दस्तावेजी धोखाधड़ी का एक व्यापक तंत्र सक्रिय है।
विशेष गहन संशोधन एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए की जाती है। इस प्रक्रिया में घर-घर जाकर मतदाताओं की पहचान और पता सत्यापित किया जाता है। फर्जी मतदाताओं की पहचान करके उन्हें सूची से हटाया जाता है। यह चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता के लिए अत्यंत आवश्यक है।
बूथ लेवल ऑफिसर्स की सुरक्षा की मांग, विरोध प्रदर्शन और अवैध प्रवासियों का पलायन – ये सभी स्थितियां मिलकर बंगाल में मतदाता सूची की अखंडता के बारे में गंभीर सवाल खड़े करती हैं। राजनीतिक दलों के बीच इस मुद्दे को लेकर तनाव बढ़ता जा रहा है। तृणमूल कांग्रेस का आंदोलन इस तनाव को और भी बढ़ा सकता है।
चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि मतदाता सूची का सत्यापन एक नियमित और कानूनी प्रक्रिया है। इसका उद्देश्य केवल वैध मतदाताओं को सूची में रखना है। हालांकि, राज्य सरकार और स्थानीय राजनीतिक दल इस प्रक्रिया को लेकर संदेह जता रहे हैं। उनका आरोप है कि यह एक राजनीतिक षड्यंत्र का हिस्सा है।
पिछले कुछ वर्षों में पश्चिम बंगाल में जनसांख्यिकीय बदलाव एक चर्चित विषय रहा है। सीमावर्ती जिलों में विशेष रूप से इस तरह के बदलाव देखे गए हैं। अवैध प्रवासन का मुद्दा राज्य की राजनीति में एक संवेदनशील विषय बन गया है। विभिन्न राजनीतिक दल इस मुद्दे को अपने-अपने नजरिए से पेश करते हैं।
फर्जी दस्तावेजों के मामले में केंद्रीय जांच एजेंसियों ने कई बार कार्रवाई की है। पाठानखाली मामला इसका एक उदाहरण है। इस तरह के मामलों से पता चलता है कि अवैध प्रवासी किस तरह से भारतीय नागरिकता के दस्तावेज प्राप्त कर लेते हैं। यह न केवल चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करता है बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी चिंता का विषय है।
मतदाता सत्यापन अभ्यान के दौरान अधिकारियों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। कई बार लोग सहयोग नहीं करते या गलत जानकारी देते हैं। राजनीतिक दबाव एक अतिरिक्त समस्या है जो खासकर संवेदनशील क्षेत्रों में देखी जाती है। इसीलिए बूथ लेवल ऑफिसर्स ने सुरक्षा की मांग की है।
केंद्र सरकार का कहना है कि मतदाता सूची की शुद्धता लोकतंत्र की मजबूती के लिए जरूरी है। चुनाव आयोग ने आश्वासन दिया है कि सत्यापन प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी और निष्पक्ष होगी। हालांकि, राज्य में मौजूदा राजनीतिक माहौल को देखते हुए यह प्रक्रिया चुनौतीपूर्ण साबित हो सकती है।
तृणमूल कांग्रेस के विरोध प्रदर्शन से स्थिति और भी जटिल हो सकती है। पार्टी का आरोप है कि केंद्र सरकार राजनीतिक लाभ के लिए इस प्रक्रिया का दुरुपयोग कर रही है। वहीं, भाजपा का कहना है कि यह केवल फर्जी मतदाताओं को हटाने की एक वैध कार्रवाई है। दोनों पक्षों के बीच यह विवाद आगे भी जारी रह सकता है।
अगले कुछ दिनों में स्थिति और भी स्पष्ट होगी कि मतदाता सत्यापन प्रक्रिया कितनी सफलतापूर्वक संपन्न होती है। बूथ लेवल ऑफिसर्स की सुरक्षा, राजनीतिक दलों के बीच सहयोग और जनता की भागीदारी – ये सभी कारक इस प्रक्रिया की सफलता निर्धारित करेंगे। पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची की अखंडता का मुद्दा न केवल राज्य बल्कि पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण है।
