दिवाली, यानी प्रकाश का पर्व, पूरे भारत में धूम-धाम से मनाया जाता है, लेकिन अयोध्या में इसकी छटा निराली होती है। यह केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह स्वयं भगवान श्री राम के 14 वर्षों के वनवास के बाद अपनी नगरी लौटने का उत्सव है। हाल के वर्षों में, अयोध्या का ‘दीपोत्सव’ एक वैश्विक आयोजन बन गया है, जिसने भव्यता के नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं। वास्तव में, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 2017 में शुरू किया गया यह आयोजन आज गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में अपना नाम दर्ज करा चुका है। 2023 के दीपोत्सव में भी, सरयू नदी के तट पर 22.23 लाख (2.223 मिलियन) से अधिक मिट्टी के दीये जलाए गए। इसके परिणामस्वरूप, एक नया विश्व रिकॉर्ड बनाया गया। यह आयोजन सिर्फ दीयों की गिनती नहीं है। यह वास्तव में अयोध्या के सांस्कृतिक पुनरुत्थान, लाखों श्रद्धालुओं की गहरी आस्था और ‘नव्य अयोध्या’ के उदय का प्रतीक है।
अयोध्या दीपोत्सव: एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण
अयोध्या की दिवाली का महत्व त्रेतायुग से जुड़ा है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, जब भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण जी रावण का वध कर 14 वर्षों का वनवास पूरा करके अयोध्या लौटे, तब पूरी नगरी ने घी के दीये जलाकर उनका स्वागत किया था। वह दिन कार्तिक मास की अमावस्या का दिन था, जिसे आज हम दिवाली के रूप में मनाते हैं। हालांकि, सदियों तक यह परंपरा घरों में मनाई जाती रही, लेकिन इसे एक संगठित और भव्य राजकीय उत्सव का रूप 2017 में मिला।
दीपोत्सव की शुरुआत और इसका उद्देश्य
2017 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ‘दीपोत्सव’ की शुरुआत की। उनका मुख्य उद्देश्य अयोध्या की इस पौराणिक विरासत को वैश्विक पटल पर लाना था। इसका उद्देश्य केवल दिवाली मनाना नहीं था, बल्कि इसके कई अन्य लक्ष्य भी थे:
- सांस्कृतिक पहचान को पुनः स्थापित करना: इसका लक्ष्य अयोध्या को उसकी वास्तविक पहचान दिलाना है। यानी, इसे भगवान राम की नगरी के रूप में विश्व मानचित्र पर चमकाना है।
- पर्यटन को बढ़ावा देना: अयोध्या को एक प्रमुख धार्मिक और आध्यात्मिक पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करना।
- स्थानीय अर्थव्यवस्था को गति देना: इसके अतिरिक्त, दीपोत्सव के माध्यम से स्थानीय कारीगरों को रोजगार प्रदान करना है। विशेषकर कुम्हारों को इससे बड़े पैमाने पर काम मिलता है।
पहले ही वर्ष (2017) में, लगभग 1.71 लाख दीये जलाए गए, जो उस समय अपने आप में एक रिकॉर्ड था। तब से, यह आयोजन हर साल नई ऊंचाइयां छू रहा है।
पौराणिक कथाओं से जुड़ाव: क्यों खास है अयोध्या की दिवाली?
अयोध्या की दिवाली अन्य स्थानों से इसलिए भिन्न है क्योंकि यह ‘घर वापसी’ का उत्सव है। यह अंधकार पर प्रकाश की विजय तो है ही, साथ ही यह अपने राजा, अपने आराध्य, अपने राम के वापस आने की खुशी है। सरयू का तट, जो भगवान राम के जीवन का साक्षी रहा है, जब लाखों दीयों से जगमगाता है, तो ऐसा प्रतीत होता है मानो त्रेतायुग जीवंत हो उठा हो। इसलिए, यहाँ का कण-कण राममय हो जाता है। श्रद्धालु केवल दीये नहीं जलाते, बल्कि वे उस ऐतिहासिक क्षण का हिस्सा बनते हैं, जिसकी कल्पना उनके पूर्वजों ने की थी।
भव्यता के नए कीर्तिमान: दीपोत्सव के आँकड़े
अयोध्या का दीपोत्सव हर साल अपने ही बनाए रिकॉर्ड को तोड़ता आया है। यह भव्य आयोजन उत्तर प्रदेश सरकार के पर्यटन विभाग और स्थानीय प्रशासन के कुशल प्रबंधन का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। उदाहरण के लिए, दीयों की गिनती के लिए गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स की टीम बकायदा ड्रोन कैमरों और हाई-टेक सेंसर का इस्तेमाल करती है।
साल-दर-साल बढ़ता दीपों का कारवाँ
दीपोत्सव की यात्रा अद्भुत रही है। यह तालिका दर्शाती है कि कैसे कुछ ही वर्षों में यह आयोजन एक छोटे से उत्सव से बढ़कर विश्व रिकॉर्ड तक पहुँच गया:
| वर्ष (Year) | जलाए गए दीपों की संख्या (लगभग) | मुख्य विशेषताएँ |
| 2017 | 1.71 लाख | प्रथम भव्य दीपोत्सव की शुरुआत। |
| 2018 | 3.01 लाख | आयोजन की भव्यता में वृद्धि, सरयू तट पर लेजर शो। |
| 2019 | 4.04 लाख | पहला गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड (Largest display of oil lamps)। |
| 2020 | 6.06 लाख | महामारी के बीच भी रिकॉर्ड बना, वर्चुअल दीपोत्सव। |
| 2021 | 9.41 लाख | 3डी होलोग्राफिक शो और प्रोजेक्शन मैपिंग की शुरुआत। |
| 2022 | 15.76 लाख | एक नया विश्व रिकॉर्ड स्थापित किया गया। |
| 2023 | 22.23 लाख | अब तक का सबसे बड़ा विश्व रिकॉर्ड, राम मंदिर के निकट। |
स्रोत: उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग और गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स के आधिकारिक आँकड़े।
2023 का ऐतिहासिक विश्व रिकॉर्ड
11 नवंबर 2023 का दिन अयोध्या के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हो गया। यह दीपोत्सव राम मंदिर में ‘प्राण प्रतिष्ठा’ (जनवरी 2024) से ठीक पहले हुआ था। इसलिए, इसने सारे पुराने कीर्तिमान ध्वस्त कर दिए। सरयू नदी के किनारे ‘राम की पैड़ी’ पर 51 घाटों को सजाया गया। इन घाटों पर 25,000 से अधिक स्वयंसेवकों ने मिलकर 22 लाख 23 हजार दीये जलाए। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स के प्रतिनिधियों ने ड्रोन की मदद से इन दीयों की गिनती की। इसके बाद, इसे ‘तेल के दीयों का सबसे बड़ा प्रदर्शन’ (Largest display of oil lamps) घोषित किया गया। यह दृश्य अलौकिक था। वास्तव में, सरयू का जल लाखों दीयों के प्रतिबिंब से ऐसा लग रहा था, मानो आकाशगंगा स्वयं धरती पर उतर आई हो।
सरयू घाट का अलौकिक दृश्य
दीपोत्सव का केंद्र बिंदु सरयू नदी का तट, विशेषकर ‘राम की पैड़ी’ होता है। इस पूरे क्षेत्र को किसी दुल्हन की तरह सजाया जाता है।
लेजर शो और सांस्कृतिक कार्यक्रम
सिर्फ दीये जलाना ही दीपोत्सव का एकमात्र आकर्षण नहीं है। यह तकनीक और परंपरा का अद्भुत संगम है। उदाहरण के लिए, सरयू के जल पर भव्य लेजर शो का आयोजन किया जाता है। इसमें रामायण के प्रसंगों, भगवान राम के जीवन और अयोध्या के गौरवशाली इतिहास को दर्शाया जाता है। 3डी होलोग्राफिक प्रोजेक्शन मैपिंग के जरिए घाटों की इमारतों पर जीवंत दृश्य भी दिखाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त, रामलीला का मंचन और भजन संध्या का आयोजन किया जाता है। विदेशी कलाकारों द्वारा रामायण पर आधारित प्रस्तुतियाँ भी होती हैं। ये सभी कार्यक्रम इस माहौल को और भी भक्तिमय बना देते हैं।
लाखों श्रद्धालुओं का संगम
इस दिव्य क्षण का साक्षी बनने के लिए दिवाली के अवसर पर देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु अयोध्या पहुँचते हैं। ‘जय श्री राम’ के उद्घोष से पूरा वातावरण गूंज उठता है। लोग घाटों पर दीये जलाते हैं और सरयू में आस्था की डुबकी लगाते हैं। साथ ही, वे इस उत्सव का हिस्सा बनकर स्वयं को धन्य महसूस करते हैं। इस प्रकार, यह केवल एक सरकारी आयोजन नहीं रहता है। बल्कि यह एक ‘जन-उत्सव’ बन जाता है, जहाँ हर कोई अपनी आस्था का एक दीया जलाने आता है।
राम मंदिर ‘प्राण प्रतिष्ठा’ के बाद दीपोत्सव का नया अध्याय
22 जनवरी 2024 को अयोध्या में भव्य राम मंदिर के ‘प्राण प्रतिष्ठा’ समारोह ने सब कुछ बदल दिया है। यह न केवल 500 वर्षों की प्रतीक्षा का अंत था, बल्कि यह अयोध्या के लिए एक नए युग की शुरुआत भी थी।
2024 का ऐतिहासिक दीपोत्सव (पहला दीपोत्सव)
प्राण प्रतिष्ठा के बाद, 2024 में मनाया गया दीपोत्सव (जो अक्टूबर-नवंबर 2024 में हुआ) अभूतपूर्व था। यह पहला अवसर था जब भगवान राम अपने भव्य मंदिर में विराजमान थे। उसी समय यह दीपोत्सव मनाया जा रहा था। इस वर्ष का उत्साह और भव्यता पिछले सभी वर्षों से कहीं अधिक थी। अनुमानों के अनुसार, दीयों की संख्या 25 लाख के आंकड़े को पार कर गई (अंतिम सत्यापित आंकड़े गिनीज द्वारा जारी किए जाते हैं)। इसके साथ ही, श्रद्धालुओं की संख्या में भी कई गुना वृद्धि देखी गई। इस बार पूरा ध्यान केवल सरयू घाट पर ही नहीं था। बल्कि नव-निर्मित राम मंदिर परिसर को भी लाखों दीयों से सजाने पर ध्यान केंद्रित किया गया था।
पर्यटन पर अभूतपूर्व प्रभाव
राम मंदिर बनने के बाद अयोध्या एक वैश्विक आध्यात्मिक केंद्र बन गया है। मंदिर के उद्घाटन के बाद पहले ही महीने में लाखों श्रद्धालुओं ने दर्शन किए। यह संख्या लगातार बढ़ रही है। जाहिर है, दीपोत्सव जैसे आयोजन इस पर्यटन को और अधिक बढ़ावा देते हैं।
इस संदर्भ में, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) की एक शोध रिपोर्ट महत्वपूर्ण है। इसके अनुसार, 2024 में राम मंदिर के कारण अयोध्या में पर्यटकों की संख्या में भारी उछाल आया है। परिणामस्वरूप, उत्तर प्रदेश सरकार को वित्तीय वर्ष 2024-25 में लगभग ₹25,000 करोड़ (लगभग $3 बिलियन) का अतिरिक्त कर राजस्व प्राप्त होने का अनुमान है। यह दीपोत्सव जैसे आयोजनों की सफलता और उनके आर्थिक प्रभाव को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।
दीपोत्सव का आर्थिक और सामाजिक प्रभाव
यह आयोजन केवल धार्मिक और सांस्कृतिक ही नहीं है, बल्कि इसका एक मजबूत आर्थिक और सामाजिक पहलू भी है।
स्थानीय अर्थव्यवस्था को मिला बल
दीपोत्सव का सबसे बड़ा लाभ अयोध्या और आसपास के क्षेत्रों की स्थानीय अर्थव्यवस्था को मिला है।
- कुम्हारों को रोजगार: 22 लाख से अधिक दीये बनाने के लिए हजारों कुम्हार परिवारों को महीनों पहले से ऑर्डर मिल जाते हैं। यह उन्हें न केवल एक स्थिर आय प्रदान करता है, बल्कि उनकी पारंपरिक कला को भी जीवित रखता है।
- अन्य स्थानीय उद्योग: फूल विक्रेता, मिठाई बनाने वाले, होटल, ट्रांसपोर्टर और गाइड, इन सभी के लिए यह समय ‘बम्पर कमाई’ का होता है।
- महिला स्वयं सहायता समूह: दीये जलाने, घाटों को सजाने और रंगोली बनाने के काम में बड़ी संख्या में महिला स्वयं सहायता समूहों को भी शामिल किया जाता है। इससे महिला सशक्तिकरण को बल मिलता है।
‘नव्य अयोध्या’ का उदय: इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास
दीपोत्सव और राम मंदिर ने अयोध्या के कायाकल्प को गति दी है। ‘नव्य अयोध्या’ के विजन के तहत, शहर में विश्व स्तरीय बुनियादी ढाँचे का विकास किया जा रहा है:
- महर्षि वाल्मीकि अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा: अयोध्या को सीधे दुनिया के प्रमुख शहरों से जोड़ने के लिए एक नए अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे का उद्घाटन किया गया। इसके कारण, पर्यटकों का आना बेहद सुगम हो गया है।
- अयोध्या धाम जंक्शन रेलवे स्टेशन: रेलवे स्टेशन का पुनर्विकास करके इसे आधुनिक सुविधाओं से लैस किया गया है। साथ ही, इसकी वास्तुकला मंदिर जैसी ही भव्य है।
- सड़कें और होटल: शहर के भीतर चौड़ी सड़कें, नए फ्लाईओवर और कई बड़े होटल श्रृंखलाओं का आगमन हो रहा है, ताकि लाखों श्रद्धालुओं के ठहरने और घूमने की व्यवस्था की जा सके।
वैश्विक मंच पर अयोध्या
दीपोत्सव ने अयोध्या को भारत की ‘सॉफ्ट पावर’ (Soft Power) के एक प्रमुख केंद्र के रूप में स्थापित किया है। उदाहरण के लिए, दक्षिण कोरिया सहित कई देशों के उच्चायुक्त और प्रतिनिधि इस आयोजन में शामिल होते रहे हैं। (दक्षिण कोरिया का अयोध्या से एक पौराणिक संबंध माना जाता है, रानी हेओ ह्वांग-ओके या सुरीरत्ना को अयोध्या की राजकुमारी माना जाता है)। इस प्रकार, यह आयोजन दुनिया को भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और एकता का संदेश देता है।
तैयारी और प्रबंधन: कैसे सजती है अयोध्या?
लाखों दीयों को एक साथ, एक समय पर जलाना एक बहुत बड़ी चुनौती है। इसलिए, इसके लिए महीनों पहले से योजना बनाई जाती है।
स्वयंसेवकों की भूमिका
इस महा-अभियान की रीढ़ हैं ‘स्वयंसेवक’। डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, अयोध्या के हजारों छात्र-छात्राएँ इस कार्य में जुटते हैं। इसके अलावा, अन्य स्वयंसेवी संस्थाओं के सदस्य भी शामिल होते हैं।
- घाटों की सफाई की जाती है और दीये रखने के लिए चौकोर खाँचे (ग्रिड) बनाए जाते हैं।
- हर स्वयंसेवक को एक निश्चित क्षेत्र आवंटित किया जाता है।
- दीयों में तेल भरना और बत्ती लगाना एक दिन पहले ही पूरा कर लिया जाता है।
- एक निश्चित सिग्नल मिलते ही, सभी स्वयंसेवक एक साथ दीये जलाना शुरू करते हैं। और देखते ही देखते, कुछ ही मिनटों में पूरा घाट रोशन हो उठता है।
सुरक्षा और सुविधाएँ
लाखों की भीड़ को नियंत्रित करना एक बड़ी प्रशासनिक चुनौती होती है। इसके लिए, उत्तर प्रदेश पुलिस और अर्धसैनिक बलों की व्यापक तैनाती की जाती है। ड्रोन कैमरों और कंट्रोल रूम से निगरानी रखी जाती है। साथ ही, श्रद्धालुओं के लिए पीने के पानी, चिकित्सा सुविधाओं और अस्थायी शौचालयों की व्यवस्था की जाती है। यातायात को सुगम बनाए रखने के लिए विशेष योजनाएँ लागू की जाती हैं।
दीपोत्सव 2025: क्या हैं उम्मीदें?
हम वर्तमान में अक्टूबर 2025 में हैं। इसलिए, आगामी दीपोत्सव (जो नवंबर 2025 में होने वाला है) को लेकर उत्साह चरम पर है। राम मंदिर में भगवान राम की उपस्थिति में यह दूसरा दीपोत्सव होगा। निश्चित रूप से, इस वर्ष की तैयारियाँ पिछले वर्ष से भी अधिक भव्य होने की उम्मीद है।
प्रशासन और सरकार का लक्ष्य केवल 2023 के 22.23 लाख दीयों के रिकॉर्ड को तोड़ना नहीं है। बल्कि, 25 लाख या उससे भी अधिक का नया कीर्तिमान स्थापित करना है। इसके लिए, इस वर्ष दीपोत्सव का विस्तार सरयू के घाटों से आगे बढ़ाया जा रहा है। इसे राम पथ, भक्ति पथ और मंदिर परिसर के आसपास के क्षेत्रों में भी करने की योजना है। अयोध्या कभी एक छोटा धार्मिक शहर था। लेकिन आज, यह दीपोत्सव के माध्यम से दुनिया को दिखा रहा है कि कैसे परंपरा, तकनीक, आस्था और विकास एक साथ मिलकर ‘नव्य भारत’ का निर्माण कर सकते हैं।
निष्कर्ष
अयोध्या में दिवाली का उत्सव केवल मिट्टी के दीये जलाने का आयोजन नहीं है। यह श्री राम के आदर्शों का उत्सव है। यह अंधकार पर प्रकाश की शाश्वत विजय का उत्सव है। और साथ ही, यह एक राष्ट्र की अपनी सांस्कृतिक जड़ों की ओर लौटने का उत्सव है। सरयू के तट पर जलता हर एक दीया, लाखों भारतीयों की आस्था का प्रतिबिंब है। जैसे-जैसे अयोध्या अपने नए स्वरूप में ढल रही है, यह दीपोत्सव भी भव्य से भव्यतम होता जा रहा है। नतीजतन, यह न केवल अयोध्या को, बल्कि पूरे विश्व को अपनी अलौकिक आभा से प्रकाशित कर रहा है।
