75 साल बाद सेफ्टी पिन से विमानवाहक पोत तक: INS विक्रांत में 510 भारतीय कंपनियों का जौहर

भारत ने अपनी रक्षा क्षमताओं में एक नया अध्याय लिखा है। INS विक्रांत के रूप में देश का पहला स्वदेशी विमानवाहक पोत तैयार हुआ है, जो 76% स्वदेशी सामग्री के…

महत्वपूर्ण पोस्ट साझा करें

भारत ने अपनी रक्षा क्षमताओं में एक नया अध्याय लिखा है। INS विक्रांत के रूप में देश का पहला स्वदेशी विमानवाहक पोत तैयार हुआ है, जो 76% स्वदेशी सामग्री के साथ निर्मित है । यह जलयान न केवल भारतीय नौसेना की शक्ति का प्रतीक है, बल्कि देश की औद्योगिक क्षमता का भी जीवंत उदाहरण है। आजादी के 75 साल बाद भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया है जो अपना विमानवाहक पोत बना सकते हैं ।​

कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड में निर्मित यह विशाल पोत 262 मीटर लंबा और 62 मीटर चौड़ा है । इसका पूरा विस्थापन 45,000 टन है और यह 88 मेगावाट की शक्ति उत्पन्न करता है । पोत में 30 विमानों को रखा जा सकता है, जिसमें मिग-29के लड़ाकू विमान और विभिन्न हेलीकॉप्टर शामिल हैं । इसकी 8,600 मील की सहनशीलता इसे लंबी अवधि तक समुद्र में संचालित करने में सक्षम बनाती है ।​

विक्रांत का निर्माण भारतीय उद्योग की सामूहिक शक्ति को दर्शाता है। इस परियोजना में लगभग 500 सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों की भागीदारी रही है । इन कंपनियों ने 12,000 सहायक उद्योगों के कर्मचारियों के साथ मिलकर इस महत्वाकांक्षी परियोजना को साकार किया है । केवल कोचीन शिपयार्ड में ही 2,000 कर्मचारियों को प्रत्यक्ष रोजगार मिला है ।​

भारत की औद्योगिक यात्रा को देखें तो स्वतंत्रता के समय देश की विनिर्माण क्षमता अत्यंत सीमित थी। उस दौर में बुनियादी वस्तुओं का आयात करना पड़ता था । आज भारत न केवल अपनी जरूरतों को पूरा करता है, बल्कि जटिल रक्षा उपकरणों का निर्यात भी कर रहा है। विक्रांत इसी आत्मनिर्भरता की मिसाल है।​

इस पोत के निर्माण में उपयोग हुआ विशेष ग्रेड स्टील भी स्वदेशी है। स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) ने 30,000 टन DMR ग्रेड स्पेशियल्टी स्टील की आपूर्ति की है । यह स्टील रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और भारतीय नौसेना के सहयोग से विकसित किया गया है । पहले इस प्रकार के स्टील का आयात करना पड़ता था, लेकिन अब भारत इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो गया है।​

पोत की तकनीकी विशेषताएं अंतर्राष्ट्राष्ट्रीय मानकों के अनुकूल हैं। यह STOBAR (शॉर्ट टेक-ऑफ बट अरेस्टेड रिकवरी) कॉन्फ़िगरेशन का उपयोग करता है । इसमें विमानों के उड़ान भरने के लिए स्की-जंप और उतरने के लिए अरेस्टर वायर्स की व्यवस्था है । पोत में 1,600 चालक दल के सदस्यों के लिए स्थान है और यह 45 दिनों तक स्वतंत्र रूप से समुद्र में काम कर सकता है ।​

विक्रांत का नाम 1971 के युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पूर्ववर्ती INS विक्रांत के सम्मान में रखा गया है । उस विक्रांत ने बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में निर्णायक भूमिका निभाई थी। नया विक्रांत उस गौरवशाली परंपरा को आगे बढ़ाता है।​

पोत के अंदर का ढांचा एक छोटे शहर की तरह है। इसमें 16 बिस्तरों वाला अस्पताल, 2,400 कम्पार्टमेंट्स और 250 ईंधन टैंकर हैं । इसका हैंगर दो ओलंपिक आकार के स्विमिंग पूल के बराबर बड़ा है । यह दो फुटबॉल मैदान जितना लंबा और 18 मंजिला इमारत जितना ऊंचा है ।​

भारतीय नौसेना के डिज़ाइन ब्यूरो द्वारा डिज़ाइन किए गए इस पोत का निर्माण 2009 में शुरू हुआ था । इसकी लागत लगभग 20,000 करोड़ रुपए आई है । परियोजना तीन चरणों में पूरी हुई – 2007, 2014 और 2019 में । व्यापक परीक्षणों के बाद 2022 में इसे भारतीय नौसेना में शामिल किया गया ।​

इस पोत के निर्माण से देश में सहायक उद्योगों का विकास हुआ है। शिपबिल्डिंग उद्योग में स्टील, इंजीनियरिंग उपकरण, पोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे कई क्षेत्र शामिल हैं । इन सभी के विकास से विनिर्माण क्षेत्र को मजबूती मिली है। छोटे व्यवसायों के लिए अवसर बने हैं और आपूर्ति श्रृंखला नेटवर्क मजबूत हुआ है ।​

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में इस पोत पर दिवाली मनाई और ऑपरेशन सिंदूर की सफलता का जश्न मनाया । उन्होंने कहा कि केवल विक्रांत का नाम ही पाकिस्तान की नींद उड़ाने के लिए काफी है । यह टिप्पणी अरब सागर में पोत की तैनाती के संदर्भ में की गई थी ।​​

विक्रांत के साथ भारत उन गिने-चुने देशों के समूह में शामिल हो गया है जो विमानवाहक पोत का निर्माण कर सकते हैं। अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन और चीन के बाद भारत छठा ऐसा देश बन गया है । यह उपलब्धि ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान की सफलता को दर्शाती है।​

वर्तमान में भारतीय नौसेना के पास दो विमानवाहक पोत हैं – INS विक्रांत और INS विक्रमादित्य । विक्रमादित्य रूसी प्लेटफॉर्म पर आधारित है, जबकि विक्रांत पूर्णतः स्वदेशी है । भविष्य में तीसरे विमानवाहक पोत INS विशाल की योजना है, जो और भी बड़ा और उन्नत होगा ।​

यह ऐतिहासिक उपलब्धि भारत की बढ़ती समुद्री शक्ति का प्रतीक है। ‘ब्लू वाटर नेवी’ के रूप में भारतीय नौसेना की पहुंच अब गहरे समुद्रों तक है । INS विक्रांत न केवल एक युद्धपोत है, बल्कि 21वीं सदी में भारत के आत्मविश्वास, प्रतिभा और प्रतिबद्धता का जीवंत प्रमाण है।​

About Author

Leave a Comment